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जिनवाणी के प्राचीन शास्त्र जयधवला जी के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग दीजिए
हमारे महान पुण्योदय से मूढविद्री (दक्षिण) के शास्त्र भण्डार से बड़ी कठिनाई से प्राप्त द्वादशांग श्रुत के मूल अंश 'कषाय पाहुड' की आचार्य वीरसेनकृत विशाल टीका जय धवला के लगभग १६ भागों में जैन संघ मथुरा द्वारा प्रकाशित किया गया था जिसके धीरे-धीरे सभी भाग समाप्त | हो गये। गत् ३ वर्ष पूर्व १२ भागों को पुनः प्रकाशित कराया और अब शेष ४ भागों १, १४, १५, १६ को प्रकाशन हेतु प्रेस को भेज दिये हैं। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संघ मथुरा ने अपने अनेक महत्वपूर्ण सेवा कार्यों में जैन धर्म आदि सर्वोपयोगी ग्रन्थों के साथ जयधवला के सम्पूर्ण लगभग १६ भागों में से | कुछ बचे हुए भागों के एवं कुछ पूर्ण प्रकाशित भागों के पुनः प्रकाशन का भार सम्हाले रखा है। संघ की | इस जिम्मेदारी को पूर्ण करने हेतु उदार दानदाताओं के आर्थिक सहयोग की महती आवश्यकता है।
अग्रायणी पूर्व के मूल अंश षटखंडागम् की धवल महाधवल टीकाओं का दो बार प्रकाशन हो चुका है। यह षटखंडागम् आचार्य धरसैन की रचना है जिसकी टीका आचार्य वीरसैन ने की है। | आचार्य धरसैन से कुछ पूर्ववर्ती उक्त कषाय पाहुड के ज्ञात आचार्य गुणधर थे। इसी के आधार पर आचार्य कुन्दकुन्द ने समयसार आदि दृव्य दृष्टि प्रधान ग्रन्थों की रचना की है। संघ के संस्थापक समाज के वरिष्ठ विद्वान स्व० पं० राजेन्द्र कुमार जी सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचंद जी, पं० फूलचंद जी ने हैं उक्त जयधवला टीका का हिन्दी अनुवाद किया है। संघ के पूर्व प्रधान मंत्री प्रो० खुशालचंद जी |गोरा वाला, पं० जगन्मोहन लाल जी शास्त्री रहे हैं। वर्तमान में अखिल भारतीय स्तर के समाजसेव
श्री ताराचंद जी प्रेमी, उक्त सभी क्रियाशील विद्वान समर्पित भाव से संघ समाज और साहित्य सेवाओं | में संलग्न हैं।
अंत में जिस प्रकार समाज में पंचकल्याणकों एवं मंदिर निर्माण में उदार दानदाता अपना आर्थिक सहयोग देते हैं, उसी प्रकार उन्हें इस प्राचीन शास्त्र जयधवला जी के प्रकाशन में अपना आर्थिक सहयोग प्रदान करना चाहिए।
. - पं० नाथूलाल जैन शास्त्री, इन्दौर
प्रथम संस्करण : 1983 (वीर निर्वाण) : 2509 द्वितीय संस्करण : 2004 (वीर निर्वाण) : 25 30
प्रकाशक: भारतवर्षीय दि० जैन संघ चौरासी-मथुरा (उत्तरप्रदेश) ।
२ मूल्य : संशोषित मूल्य 250/- रूप
कार्यालय दूरभाष :
0565-2420711 मुद्रक : Lo नरूला ऑफसेट प्रिन्टर्स a शाहदरा, दिल्ली
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