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खवगसेढीए विदियमूलगाहाए पंचमभासगाहा
२४५ च वेदगत्तेण भयणिज्जो, जेसिं वेदगो तेसिं वेदगो चेव । जेसिं च ण वेदगो तेसिमवेदगो चेवेत्ति, तत्थ भयणाए संभवाणुवलंभादो। णवरि णामपयडीसु संठाणादीणं केसि पि उदएण भयणिज्जत्तमत्थि तेसि पि 'च' सद्देण संगहो कायन्वो। एत्थेव विदिय 'च' सद्दण द्विदिउदओ पदेसुदओ च वेदिज्जमाणसव्वपयडीणमजहण्णाणुक्कस्ससरूवो उदीरणसहगओ गहेयव्यो ।
$ २२२, संपहि एवंविहमेदस्स गाहासुत्तस्स अत्थं विहासेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं मणइ* विहासा।
२२३. सुगमं । * तं जहा। ६२२४. सुगमं । * वेदे च ताव तिण्हं वेदाणमण्णवरं वेदेज्ज ।
२२५. सुगमं ।
* वेदणीये सादं वा असादं वा। अनुभागोंका वेदकपनेसे भजनीय नहीं है, क्योंकि जिनका वेदक है उनका वेदक ही है और जिनका वेदक नहीं है उनका अवेदक ही है, इसलिये शेष प्रकृतियोंके वेदन करनेमें भजनीयपना सम्भव नहीं है। इतनी विशेषता है कि नामकर्मकी प्रकृतियोंमेंसे संस्थान आदि किन्हीं प्रकृतियोंके उदयसे भजनीया.ना भी है, इसलिये उनका भाष्यगाथामें आये हुए 'च' पद द्वारा संग्रह कर लेना चाहिये। तथा यहीं आये हुए दूसरे 'च' पद द्वारा वेदी जानेवाली सब प्रकृतियोंके स्थिति उदय और प्रदेशउदयको उदीरणाके साथ अजघन्य-अनुत्कृष्टरूपसे ग्रहण करना चाहिये।
विशेषार्थ-इस जीवके छह संस्थानोंमेंसे किसी एक संस्थान, दो विहायोगतियोंमेंसे किसी एक विहायोगति और दो स्वरोंमेंसे किसी एक स्वरका उदय और उदीरणा सम्भव है, इसलिये इस अपेक्षासे यहाँ २४ भंग हो जाते हैं। शेष कथन सुगम है।
६ २२२. अब इस गाथासूत्रकी इस प्रकार विभाषा करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* अब इस भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं। ६ २२३. यह सूत्र सुगम है। * बह जैसे । ६ २२४. यह सूत्र सुगम है।
* सर्व प्रथम 'वेदे च' पदकी विमाषा–तीनों वेदोंमेंसे किसी एक वेदका वेदन करता है।
$२२५. यह सूत्र सुगम है। * 'वेदणीये' इस पदकी विभाषा–सातावेदनीयका वेदन करता है अथवा