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________________ २११ खवगसेढीए सत्तणोकसायक्खवणापरूवणा $ १३७. गयत्थमेदं सुत्तं । सेसाणं पुण अज्ज वि डिदिसंतकम्मपमाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो चेव होदि त्ति घेत्तव्वं । * से काले सत्तण्हं णोकसायाणं पढमसमयसंकामगो। १३८. इत्थिवेदक्खवणाणंतरं हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछा-पुरिसवेदाणमाजुत्तकिरियाए खवणमाढविय तेसिं पढमसमयसंकामगो जादो त्ति भणिदं होदि । संपहि तक्काले सव्वेसिं कम्माणं द्विदिबंधप्पाबहुअं केरिसं होदि ति जादारेयस्स सिस्सस्स णिरारेगीकरणट्ठमुत्तरसुत्तं भणइ * सत्तण्हं णोकसायाणं पढमसमयसंकामगस्स हिदिबंधो मोहणीयस्स थोवो। * णाणावरण-दसणावरण-अंतराइयाणं हिदिबंधो संखेजगुणो। * णामागोदाणं हिदिबंधो असंखेजगुणो । * वेदणीयस्स हिदिबंधो विसेसाहिओ। १३९. गयत्थमेदं सुत्तं । संपहि एदम्मि चेव णिरुद्धसमए सव्वेसि कम्माणं हिदिसंतकम्मविसयथोवबहुत्तगवेसणहमुवरिमो मुत्तपबंधो * ताधे हिदिसंतकम्मं मोहणीयस्स थोवं । $ १३७. यह सूत्र गतार्थ है। परन्तु शेष कर्मोंका स्थितिसत्कर्म अभी भी पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिये । * तदनन्तर समयमें सात नोकषायोंका प्रथम समयवर्ती संक्रामक होता है। $ १३८. स्त्रीवेदकी क्षपणाके अनन्तर हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा और पुरुषवेदके आयुक्त क्रियाके द्वारा क्षपणाका आरम्भ करके उनका प्रथम समयवर्ती संक्रामक हो जाता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब उस समय सभी कर्मोंके स्थितिबन्धका अल्पबहुत्व किस प्रकारका होता है ऐसी आशंका जिस शिष्यके हुई है उसे निःशंक करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं * सात नोकषायोंके प्रथम समयवर्ती संक्रामकके मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध सबसे अल्प होता है। * ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा होता है। * नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है । * वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है। $ १३९. यह सूत्र गतार्थ है। अब इसी विवक्षित समयमें सभी कर्मोके स्थितिसत्कर्मविषयक अल्पबहुत्वकी मार्गणा करनेके लिये आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है * उस समय मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म सबसे अल्प है।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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