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खवगसेढीए सत्तणोकसायक्खवणापरूवणा $ १३७. गयत्थमेदं सुत्तं । सेसाणं पुण अज्ज वि डिदिसंतकम्मपमाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो चेव होदि त्ति घेत्तव्वं ।
* से काले सत्तण्हं णोकसायाणं पढमसमयसंकामगो।
१३८. इत्थिवेदक्खवणाणंतरं हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछा-पुरिसवेदाणमाजुत्तकिरियाए खवणमाढविय तेसिं पढमसमयसंकामगो जादो त्ति भणिदं होदि । संपहि तक्काले सव्वेसिं कम्माणं द्विदिबंधप्पाबहुअं केरिसं होदि ति जादारेयस्स सिस्सस्स णिरारेगीकरणट्ठमुत्तरसुत्तं भणइ
* सत्तण्हं णोकसायाणं पढमसमयसंकामगस्स हिदिबंधो मोहणीयस्स थोवो।
* णाणावरण-दसणावरण-अंतराइयाणं हिदिबंधो संखेजगुणो। * णामागोदाणं हिदिबंधो असंखेजगुणो । * वेदणीयस्स हिदिबंधो विसेसाहिओ।
१३९. गयत्थमेदं सुत्तं । संपहि एदम्मि चेव णिरुद्धसमए सव्वेसि कम्माणं हिदिसंतकम्मविसयथोवबहुत्तगवेसणहमुवरिमो मुत्तपबंधो
* ताधे हिदिसंतकम्मं मोहणीयस्स थोवं ।
$ १३७. यह सूत्र गतार्थ है। परन्तु शेष कर्मोंका स्थितिसत्कर्म अभी भी पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिये ।
* तदनन्तर समयमें सात नोकषायोंका प्रथम समयवर्ती संक्रामक होता है।
$ १३८. स्त्रीवेदकी क्षपणाके अनन्तर हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा और पुरुषवेदके आयुक्त क्रियाके द्वारा क्षपणाका आरम्भ करके उनका प्रथम समयवर्ती संक्रामक हो जाता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब उस समय सभी कर्मोंके स्थितिबन्धका अल्पबहुत्व किस प्रकारका होता है ऐसी आशंका जिस शिष्यके हुई है उसे निःशंक करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* सात नोकषायोंके प्रथम समयवर्ती संक्रामकके मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध सबसे अल्प होता है।
* ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा होता है।
* नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है । * वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है।
$ १३९. यह सूत्र गतार्थ है। अब इसी विवक्षित समयमें सभी कर्मोके स्थितिसत्कर्मविषयक अल्पबहुत्वकी मार्गणा करनेके लिये आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है
* उस समय मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म सबसे अल्प है।