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________________ खवगसेढीए अणियट्टिकरणे अन्तरकरणपरूवणा $ १२३. पुरिसवेदस्स कोहसंजलणाणं सोदयाणमंतो मुहुत्तमेत्तिं पढमट्ठिदिं मोत्तूण सेसाणं च कम्माणमवेदिज्जमाणाणमावलियमेत्तिं पढमट्ठिदिमवसेसिय पुणो अंतोमुहुत्तमेतद्विदीओ उवरिमाओ समयाविरोहेण घेत्तूण अंतरकरणमेसो करेदिति सुत्तत्थणिच्छओ । एदं च पुरिसवेद-कोहोदय क्खवगमहिंकिच्च परूविदं, अण्णहा पुण जस्स वेदस्स जस्स च संजलणस्स उदएण सेढिमारूढो तस्स पढमट्ठिदिमं तो मुहुत्तमेत्तिं ठविय अंतरं करेह ति घेत्तव्वं । तत्थ पुरिसवेदपढमट्ठिदी णवु सय- इत्थवेद-छण्णोकसायक्खवणद्वामेत्ती होण थोत्रा, कोहस्स पढमहिदी विसेसा हिया । २०५ * जाओ अंतरद्विदीओ उक्कीरंति तासिं पदेसग्गमुक्कीरमाणियासु हिंदी प दिज्जदि । $ १२४. जाओ अंतरद्वविदाओ' तासिं पदेसग्गमंतो मुहुत्तमेत फालीओ काढूण पढमफालिप्पहुडि जहाकममसंखेज्जगुणभावेणावट्टिदाओ अंतरकरणद्वामेत्तेण कालेण उक्कीरेमाणो तं पदेसग्गमुक्कीरमाणियासु ट्ठिदीसु णियमा ण देदि, तासिं णिन्लेविज्जमाणाणं पडिग्गहसत्तीए अभावादो । एवमंतरट्ठिदिपदेसग्गस्स सत्थाणे णिसेगाभावं पदुप्पाइय' अणुक्कीरिज्जमाणासु तासिं पदेसग्गस्स णिसेगो एदेण कमेण करता है ! $ १२३. उदयसहित पुरुषवेद और क्रोधसंज्वलनकी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण प्रथम स्थिति छोड़कर तथा अनुदयरूप शेष कर्मोंकी एक आवलिप्रमाण प्रथम स्थितिको छोड़कर पुनः उनके ऊपरकी अन्तर्मु प्रमाण स्थितियोंको आगमके अविरोधपूर्वक ग्रहण करके अन्तरविधिको यह क्षपक सम्पन्न करता है यह उक्त सूत्रके अर्थका निश्चय है । किन्तु यह पुरुषवेद तथा क्रोधके उदयसे क्षपकश्रणिपर चढ़े हुए जीवको अधिकृत करके कहा है । अन्यथा तो जिस वेद और जिस संज्वलनके उदयसे श्रेणिपर चढ़ा है उसकी प्रथम स्थिति अन्तर्मुहूर्तमात्र स्थापित कर अन्तरको करता है ऐसा ग्रहण करना चाहिये। उनमेंसे पुरुषवेदको प्रथम स्थिति नपुंसकवेद, स्त्रीवेद और छह नोकषायोंके क्षपणाकाल प्रमाण होकर सबसे अल्प है । क्रोधकी प्रथम स्थिति विशेष अधिक है । * जो अन्तरसम्बन्धी स्थितियाँ उत्कीरित की जाती हैं उनके प्रदेशपुंजको उत्कीरित की जानेवाली स्थितियोंमें नहीं देता है । $ १२४. जो अन्तरके लिये स्थापित की गई स्थितियाँ हैं उनके प्रदेशपुंजकी अन्तर्मुहूर्त - प्रमाण फालियाँ करके प्रथम फालिसे लेकर जो असंख्यात गुणितरूपसे अवस्थित हैं उनका अन्तरकरणकालप्रमाण कालके द्वारा उत्कीरण करता हुआ उस प्रदेशपुंजको उत्कीरण की जानेवाली स्थितियों में नियमसे नहीं देता है, क्योंकि निर्लेपन की जानेवाली उन फालियोंमें प्रतिग्रहशक्तिका अभाव है । इस प्रकार अन्तरसम्बन्धी स्थितियोंके प्रदेशपुंजकी स्वस्थानमें निषेक रचना नहीं होती इस बातका कथन करके उत्कीरित नहीं होनेवाली स्थितियोंमें उनके प्रदेशपुंजका निक्षेप इस क्रमसे होता है १. ताडपत्रीयप्रतो' पढमफालीओ तासि इति पाठः । " इति चिह्नांकितो भागः त्रुटितः । ता०प्रतौ० -दुविदाओ उक्कीरणद्धाओ २. ता० प्रती रूविय पडिवग्गहसत्तीणमंतर ट्ठिदीसु इति पाठः ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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