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________________ खवगसेढीए अणियट्टिकरणे विसेसपरूवणा १९७ * तदो द्विदिखंडये पुण्णे चदुण्हं कम्माणं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो ट्ठिदिसंतकम्मं । * ताधे अप्पाबहुअं— सव्वत्थोवं णामागोदाणं द्विदिसंतकम्मं । * चदुण्हं कम्माणं ठ्ठिदिसंतकम्मं तुल्लं संखेज्जगुणं । * मोहणीयस्स ट्ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । * तदो ट्ठिदिखंडयपुधत्तेण मोहणीयस्स द्विदिसंतकम्मं पलिदोवमं जादं । * तदों डिदिखंडए पुण्णे सत्तण्हं कम्माणं पलिदोषमस्स संखेज्जदिभागो ट्ठिदिसंतकम्मं जादं । * तदो संखेज्जेसुट्ठिदिखंडय सहस्सेसु गदेसु णामागोदाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ट्ठिदिसंतकम्मं जादं । * ताधे अप्पाबहुअं - सव्वत्थोवं णामागोदाणं ठिदिसंतकम्मं । * चउन्हं कम्माणं ठिदिसंतकम्मं तुल्लमसंखेज्जगुणं । * मोहणीयस्स ट्ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । * तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकके पूर्ण होनेपर चार कर्मोंका पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिसत्कर्म हो जाता है । * उस समय अल्पबहुत्व — नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिसत्कर्म सबसे स्वोक है * चार कर्मोंका स्थितिसत्कर्म परस्पर तुल्य होकर संख्यातगुणा है । * मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा है । * तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्वके होनेपर मोहनीयकर्मका पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्म हो जाता है । * तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकके पूर्ण होनेपर सातों कर्मोंका पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिसत्कर्म हो जाता है । * तत्पश्चात् संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत हो जानेपर नामकर्म और गोत्रकर्मका पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिसत्कर्म हो जाता है । * उस समय अल्पबहुत्व — नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिसत्कर्म सबसे स्तोक है । * चार कर्मोंका स्थितिसत्कर्म परस्पर तुल्य होकर असंख्यातगुणा है । * मोहनीय कर्मका स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा है ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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