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________________ खवगसेढीए अणियट्टिकरणे विसेसपरूवणा 5 १०२. सुगमं । * ताघे अप्पाबहुअं–णामागोदाणं ट्ठिदिबंधो थोवो । चदुण्हं कम्माणं हिदिषंधो असंखेनगुणो । मोहणीयस्स हिदिबंधो संखेजगुणो। १०३. गयत्थमेदं सुत्तं । एवमेदेण अप्पाबहुअविहिणा पुणो वि संखेज्जेसहस्समेत्तेसु हिदिबंधेसु समइक्कतेसु तदो णाणावरणीय-दंसणावरणीय-वेदणीय-अंतराइयाणं पि दूरावकिट्टिविसए संपत्ते तदो प्पहुडि तेसि पि असंखेज्जे भागे द्विदिबंधेणोसरमाणस्स पढमे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागिए ठिदिबंधे जादे तत्तो पाए अण्णारिसमप्पाबहुअं पयदि त्ति जाणावेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ * तदो संखेज्जेसु 'हिदिषधसहस्सेसु गदेसु तिण्हं घादिकम्माणं वेदणीयस्स च पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो हिदिबंधो जादो । ताघे अप्पाबहुश्र–णामागोवाणं हिदिषंधो थोवो । चदुण्हं कम्माणं हिदिबंधो असंखेनगुणो । मोहणीयस्स हिदिबंधो असंखेनगुणो । 5 १०४. सुगमत्तादो ण एत्थ किंचि वक्खाणेयव्वमत्थि । एवमेदेणाणंतर ६१०२. यह सूत्र सुगम है। * तब अल्पबहुत्व–नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। चार कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। $ १०३. यह सूत्र गतार्थ है। इस प्रकार इस अल्पबहुत्वविधिसे फिर भी संख्यात हजार स्थितिबन्धोंके व्यतीत हो जानेपर तत्पश्चात् ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मोके भी दूरापकृष्टि विषयक स्थितिबन्धके सम्पन्न होनेपर वहाँसे लेकर उन कर्मोके भी स्थितिबन्धापसरणके असंख्यात बहुभागके जानेपर जब पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण प्रथम स्थितिबन्ध होता है तब वहाँसे लेकर अन्य प्रकारका अल्पबहुत्व प्रवृत्त होता है इस बातका ज्ञान कराते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * तत्पश्चात् संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरणोंके जानेपर तीन घातिकर्मों और वेदनीयकर्मका पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है।। * उस समय अल्पबहुत्व-नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिवन्ध सबसे स्तोक है । चार कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। $ १०४. सुगम होनेसे यहाँपर कुछ व्याख्यान करने योग्य नहीं है। इस प्रकार अनन्तर १. ताप्रती असंखेज्ज- इति पाठः ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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