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________________ १२६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे विण्णासं करेदिति । एवमुवरि वि जत्थ जत्थ मायादीणं पढमट्ठिदी विसेसाहिया ति मणिहिदि तत्थ तत्थ उच्छ्ट्ठिावलियमेत्तेण विसेसाहियत्तमवहारेयव्वं । * पंडिवदमाणयस्स लोभवेदगद्धा विसेसाहिया । $ २९७. केत्तियमेत्तेण १ ओदरमाणयस्स किंचूणसुहुम सांपराइयद्धामेत्तेण । किं कारणं ९ ओदरमाणसंबंधिसुहुमबादर लोभवेदगद्धाए संपिंडिदाए इहग्महणादो । उवसामगस्स लोभवेदगद्धा किमेत्थे द्देसे विसेसाहियभावेण णिवददि आहो परिवद - माणयस्सं मायामाणवेदगद्धाहिंतो उवरि णिवददिति णादूण मणियव्वं, सुत्ते तण्णि६ सदसणादो । * पडिवदमाणगस्स मायावेदगद्धा विसेसाहिया । $ २९८• किं कारणं १ उवरिमअद्धाहिंतो हेडिमअद्धाणं जहाकमं विसेसाहियभावेणावाणदंसणादो । * तस्सेव मायावेदगस्स छण्हं कम्माणं गुणसेढिणिक्खेवो विसेसाहिओ । २९९. केत्तियमेत्तेण ? आवलियमेत्तेण । चार संज्वलनसम्बन्धी अपने-अपने वेदककालसे उच्छिष्टावलिप्रमाणकालको अधिक करके प्रथम स्थितिकी रचना करता है। इसी प्रकार ऊपर भी जहाँ-जहाँ मायादिककी प्रथम स्थिति विशेष अधिक है ऐसा कहेंगे वहां-वहां उच्छिष्टावलिमात्र काल विशेष अधिक है ऐसा निश्चय करना चाहिये । 1 * गिरनेवालेका लोभवेदककाल विशेष अधिक है । ६ २९७. शंका - कितना अधिक है ? समाधान-उतरनेवालेके कुछ कम सूक्ष्मसाम्परायिकके कालप्रमाण अधिक है, क्योंकि उतरनेवालेके सूक्ष्म और बादर लोभवेदककालको मिलाकर पूरे कालको यहाँ ग्रहण किया गया है । उपशामकका लोभ वेदककाल विशेष अधिक होकर क्या इसी स्थानमें प्राप्त होता है या गिरनेवाले जीवके माया - मानवेदककालसे ऊपर प्राप्त होता है इसे जानकर कहना चाहिये, क्योंकि सूत्रमें उसका निर्देश देखा जाता है । * गिरनेवालेका मायावेदक काल विशेष अधिक है । $ २९८. क्योंकि उपरिम कालोंसे नीचेके कालोंका यथाक्रम विशेष अधिकरूपसे अवस्थान देखा जाता है । 83 उसी मायावेदकके छह कर्मोंका गुणश्रेणिनिक्षेप विशेष अधिक है । $ २९९. शंका - कितना अधिक है ? समाधान - मात्र एक आवलिकाल अधिक है ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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