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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [ चरित्तमोहणीय-उवसामणा परिणामपच्चइयस्स गहणं कायव्वं । एवमेदेसिं परिणामपच्चइयाणं णामा-गोदाणमेसो अणुभागोदएणावद्विदवेदगो चेव होइ, परिणामपच्चइयाणं तेसिमवद्विदपरिणामविसये पयारंतरासंभवादो त्ति सुत्तत्थसंगहो । सेसाणं पुण भवपच्चइयाणमेत्थ वेदिजमाणाधादिपयडीणं सादादीणं छवडि-छहाणिकमेणाणुभागमेसो वेदेदि त्ति घेत्तव्वं । एवमेत्तिएण पबंधेण कसायोवसामगस्स परूवणाविहासणं कादूण संपहि पयदमत्थमुवसंहरेमाणो इदमाह--
* एवमुवसामगस्स परूवणा विहासा समत्ता।
३०७. सुगमं। णामप्रत्यय इन नाम और गोत्रकर्मका यह अनुभाग-उदयकी अपेक्षा अवस्थितवेदक ही है, क्योंकि परिणामप्रत्यय उनके अवस्थित परिणामविषयक- होनेपर दूसरा प्रकार सम्भव नहीं है यह सूत्रार्थसमुच्चय है । परन्तु यहाँपर वेदी जानेवाली भवप्रत्यय शेष सातावेदनीय आदि अघाति प्रकृतियोंके छह वृद्धि और छह हानिके क्रमसे अनुभागको यह वेदता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । इस प्रकार इतने प्रबन्धके द्वारा कषायोंके उपशामककी प्ररूपणाका विशेष व्याख्यान करके अब प्रकृत अर्थका उपसंहार करते हुए इस सूत्रको कहते हैं
* इस प्रकार उपशामकका प्ररूपणासम्बन्धी विशेष व्याख्यान समाप्त हुआ। ६३०७. यह सूत्र सुगम है।