________________
गाथा १२३ ] चरित्तमोहणीय-उवसामणाए करणकज्जणिदेसो
३२५ किट्टीदो पहुडि हेट्ठा असंखेज्जदिभागं मुंचदि । कुदो एवमिदि चे ? पढमसमयोदयादो विदियसमयोदयस्स अणंतगुणहीणतण्णहाणुववत्तीदो। तम्हा पुव्वसमयोदिण्णाणं किट्टीणमग्गकिट्टीदो पहुडि असंखेजदिभागमेत्तमुवरिमभागं मोत्तूण हेट्ठिमबहुभागाकारेण विदियसमए किट्टीओ वेदेदि त्ति सिद्धं । हेट्ठदो पुण पढमसमए अणुदिण्णाणं किट्टीणमसंखेज्जदिभागमेत्तमपुव्वमाफुददि आस्पृशति वेदयत्यवष्ठभ्य गृह्णातीत्यर्थः, पढमसमयोदिण्णकिट्टीहितो विदियसमयोदिण्णकिट्टीओ विसेसहीणाओ असंखेजदिमागेण । कुदो ? हेहिमापुब्बलाहादो उवरिमपरिचत्तभागस्स बहुत्तब्भुवगमादो । एवं तदियादिसमएसु वि वत्तव्वं जाव चरिमसमयसुहुमसांपराइओ त्ति । एवमेदीए परूवणाए सुहुमसांपराइयद्धमणुपालेमाणो आवलिय-पडिआवलियासु सेसासु आगालपडिआगालवोच्छेदं कादण तदो समयाहियावलियसेसे जहण्णयं द्विदिउदीरणं कादूण पुणो कमेण चरिमसमयसुहुमसांपराइयो जादो। संपहि तत्थतणट्ठिदिबंधपमाणावहारगट्टमुत्तरसुत्तपबंधो
__* चरिमसमयसुहुमसांपपराइयस्स णाणावरण-दसणावरण-अंतराइयाणमंतोमुहुत्तिओ हिदिबंधो ।
२९१ सुगमं । उपरिम कृष्टिसे लेकर नीचे असंख्यातवें भागको छोड़ता है।
शंका--ऐसा किस कारणसे है ?
समाधान--क्योंकि ऐसा न हो तो प्रथम समयके उदयसे दूसरे समयका उदय अनन्तगुणा हीन नहीं बन सकता है।
इसलिए पूर्व समयमें उदीर्ण हुई कृष्टियोंमेंसे सबसे उपरिम कृष्टि से लेकर असंख्यातवें भागप्रमाण उपरिम भागको छोड़कर अधस्तन बहुभागप्रमाण कृष्टियोंका दूसरे समयमें वेदन करता है यह सिद्ध हुआ। परन्तु नीचेसे प्रथम समयमें अनुदीर्ण हुई कृष्टियोंके अपूर्व असंख्यातवें भागप्रमाणको 'आफुडदि' स्पर्श करता है, वेदता है, आलम्बन कर ग्रहण करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। प्रथम समयमें उदीण कृष्टियोंसे दूसरे समयमें उदीर्ण हुई कृष्टियाँ असंख्यातवें भागप्रमाण विशेष हीन हैं, क्योंकि अधस्तन अपूर्व लाभसे उपरिम परित्यक्त भाग बहुत स्वीकार किया गया है। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक संयतके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक तीसरे आदि समयोंमें भी कथन करना चाहिए। इस प्रकार इस प्ररूपणाके अनुसार सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानके कालका पालन करता हुआ आवलि और प्रत्यावलिके शेष रहनेपर आगाल और प्रत्यागालका विच्छेद करके पश्चात् एक समय अधिक आवलिप्रमाण कालके शेष रहनेपर जघन्य स्थिति उदीरणाको करके पुनः क्रमसे अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक हो जाता है। अब वहाँपर होनेवाले स्थितिबन्धके प्रमाणका अवधारण करनेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
___ * अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय. कर्मोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होता है ।
$ २९१. यह सूत्र सुगम है।