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गाथा १२३] चरित्तमोहणीयउवसामणाए करणकजणिदेसो
२८१ * जत्तो पाए णाणावरण-दसणावरण-अंतराइयाणं संखेनवस्सहिदिओ बंधो तम्हि पुण्णे जो अण्णो हिदिवंधो सो संखेजगुणहीणो।।
१९०. किं कारणं ? संखेज्जवस्सिए द्विदिबंधे पारद्धे तत्तो परमसंखेज्जगुणहाणीए असंभवादो । णामा-गोद-वेदणीयाणं पुण णाज्ज वि संखेजवस्सिओ ठिदिबंधो पारमदि ति तेसिमसंखेजगुणहीणो चेव हिदिबंधो एत्थ पयदि तिघेत्तन्वं । एवं च पयट्टमाणस्स हिदिबंधस्स अप्पाबहुअपरूवणमिदमाह--
* तम्हि समए सव्वकम्माणमप्पाबहुभं भवदि । 5 १९१. सुगमं । * तं जहा।
१९२. सुगमं ।
* मोहणीयस्स सव्वत्थोवो द्विदिबंधो । णाणावरण-दसणावरणअंतराइयाणं हिदिबंधो संखेनगुणो। णामा-गोदाणं द्विदिबंधो असंखेनगुणो। घेवणीयस्स हिदिबंधो विसेसाहिओ ।
१९३. सुगमत्तादो ण एत्थ किंचि बत्तव्यमत्थि । एवमित्थिवेदोवसामणद्धाए
* जहाँसे लेकर ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका जो संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध हुआ, उसके सम्पन्न होनेपर जो अन्य स्थितिबन्ध होता है वह संख्यातगुणा हीन होता है।
१९०. क्योंकि संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्धके प्रारम्भ होनेपर उसके बाद असंख्यातगुणी हानि होना असम्भव है। परन्तु नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मोंका अभी भी संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध प्रारम्भ नहीं करता, इसलिए उनका असंख्यात गुणाहीन ही स्थितिबन्ध यहाँ प्रवृत्त रहता है ऐसा ग्रहण करना चाहिये । इस प्रकार प्रवृत्त हुए स्थितिबन्धके अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* उसी समय सब कर्मोंका अल्पबहुत्व होता है। $ १९१. यह सूत्र सुगम है । * वह जैसे । ६ १९२. यह सूत्र सुगम है।
* मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। उससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उससे नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है तथा उससे वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।
६ १९३. सुगम होनेसे यहाँ कुछ वक्तव्य नहीं है। इस प्रकार स्त्रीवेदकी उपशामनाके