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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहणीय-उवसामणा * मायाए विदियकिट्टीदो तम्हि आवलियादिक्कतं मायाए तदियकिट्टीए लोभस्स च पढम-विदियकिट्टीसु संकामिजदि ।
६ १६७. गयत्थमेदं पि सुत्तं ।
* लोभस्स विदियकिट्टीदो तम्हि आयलियादिक्कतं लोभस तदियकिट्टीए संकामिजदि।
$ १६८. तदो पुव्वुत्तपणालीए आगंतूण लोभस्स तदियकिट्टीए संकमिय तत्थ संकमणावलियमेत्तकालमवद्विदं संतं पुव्वणिरुद्धपुरिसवेदपदेसग्गंछावलियादिक्कतं होदूण उदीरणापाओग्गं होदि त्ति एसो एदस्स सुत्तस्स भापत्थो । एवमेदं बालजणाणुग्गहढे णिदरिसणोवण्णासं कादूण संपहि एदस्सेवत्थस्स दढीकरणट्ठमुवसंहारवकमाह
* एदेण कारणेण समयपबद्धो छसु आवलियासु गदासु उदीरिजदे ।
5 १६९. गयत्थमेदं पुव्वुत्तत्थोवसंहारवकं । संपहि जहा एसो अत्थो पुरिसवेदणवकबंधमस्सियूण णिदरिसिदो, किमेवं कोहसंजलणादीणं पि णिदरिसेदुं सक्किज्जदे आहो ण सक्किज्जदि त्ति आसंकाए णिरारेगीकरणट्ठमुत्तरसुत्तारंभो
* मान और मायाकी उक्त कृष्टियोंमें रहे हुए पुरुषवेदके उस प्रदेशपुञ्जको एक आवलि व्यतीत होनेके बाद मायाकी दूसरी कृष्टिमेंसे मायाकी तीसरी कृष्टिमें तथा लोभकी पहली और दूसरी कृष्टिमें संक्रान्त करता है ।
$ १६७. यह सूत्र गतार्थ है।
* माया और लोभकी उक्त कृष्टियोंमें रहे हुए पुरुषवेदके उस प्रदेशपुञ्जको एक आवलि व्यतीत होनेके बाद लोभकी दूसरी कृष्टिमेंसे लोभकी तीसरी कृष्टिमें संक्रान्त करता है।
5 १६८. इसलिए पूर्वोक्त प्रणालीसे आकर लोभकी तीसरी कृष्टि में संक्रान्त होकर तथा वहाँ संक्रमणावलिप्रमाण काल तक अवस्थित हुआ पूर्व में विवक्षित पुरुषवेदका प्रदेशपुञ्ज छह आवलि कालके जानेके बाद उदीरणाके योग्य होता है यह इस सूत्रका भावार्थ है । इस प्रकार बालजनोंके अनुग्रह के लिए इस निदर्शनका उपन्यास करके अब इसी अर्थको दृढ़ करनेके लिये उपसंहार वाक्यको कहते हैं
* इस कारणसे नवीन बद्ध समयप्रबद्ध छह आवलियोंके व्यतीत होनेपर उदीरणाको प्राप्त किया जाता है।
$ १६९. पूर्वोक्त अर्थका उपसंहार करनेवाला यह वचन गतार्थ है। अब जिस प्रकार इस अर्थको परुषवेदके नवक बन्धका आश्रयकर दिखलाया है क्या इस प्रकार क्रोध संज्वलन आदिको भी दिखलाना शक्य है अथवा शक्य नहीं है इस प्रकारकी आशंकाके निवारण करनेके लिये आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं