________________
२४८
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चरित्तमोहणीय-उवसामणा १२८. एसो वि णामा-गोदहिदिबंधादो असंखेज्जगुणो अण्णो वा अहोदण विसेसाहिओ चेव जादो । केत्तियमेत्तो विसेसो ? दुभागमेत्तो । एदेसिं जहण्णुक्कस्सविदिबधाणं णिव्यियप्पाणमेदेण पडिभागेणायट्ठाणदंसणादो। संपहि एदस्सेव अप्पाबहुअस्स फुडीकरणमुत्तरसुत्तावयारो___* एत्थ वि णत्थि वियप्पो । तिहं पि कम्माणं हिदिबंधो णामागोदाणं हिदिबंधादो हेहदो जायमाणो एकसराहेण असंखेजगुणहीणो जादो । वेदणीयस्स हिदिबंधो ताधे चेव णामा-गोदाणं हिदिबंधादो विसेसाहिओ जादो।
१२९. सुगमं । संपहि एत्तो उपरि जाव सव्वेसिं कम्माणमसंखेज्जवस्सिओ विदिबंधो ताव एसो चेव अप्पाबहुअकमो, पत्थि अण्णो वियप्पो त्ति पदुप्पायमाणो उत्तरसुत्तमाह
* एदेण अप्पाबहुअविहिणा संखेन्जाणि हिदिबंधसहस्साणि कादूण जाणि पुण कम्माणि बज्झति ताणि पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। ..
६ १३०. एदेणाणंतरपरू विदेणप्पाबहुअविहाणेण द्विदिबंधोसरणसहस्साणि कादण गच्छमाणस कत्तिओ वि कालो गदो ताधे पुण जाणि कम्माणि बझंति तेसि सव्वेसि
१२८. यह भी नामकर्म और गोत्रकर्मके स्थितिबन्धसे असंख्यातगुणा या अन्य प्रकारका न होकर विशेष अधिक हो गया है।
शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? .
समाधान—द्वितीय भागमात्र है, क्योंकि इनके भेदरहित जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिबन्धोंका इस प्रतिभागके अनुसार अवस्थान देखा जाता है।
अब इसी अल्पबहुत्वका स्पष्टीकरण करनेके लिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं
* यहाँपर भी अन्य कोई विकल्प नहीं है । जब तीनों ही कर्मोंका स्थितिबन्ध नाम और गोत्रकर्मके स्थितिबन्धसे कम होता हुआ एक वारमें असंख्यातगुणा हो जाता है तभी वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध नाम और गोत्रकर्मके स्थितिबन्धसे विशेष अधिक हो गया है।
१२९. यह सूत्र सुगम है। अब इससे ऊपर सब कोंका स्थितिबन्ध जब तक असंख्यात वर्षवाला है तब तक अल्पबहुत्वका यही क्रम चलता रहता है, अन्य विकल्प नहीं पाया जाता इस बातका कथन करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं
* इस अल्पबहुत्वविधिसे संख्यात हजार स्थितिबन्धोंको करके पुनः जो कर्म बँधते हैं उनका वह स्थितिबन्ध पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है।
$ १३०. अनन्तर पूर्व कही गई इस अल्पबहुत्वविधिसे हजारों स्थितिबन्धापसरण क्रियाको करते हुए जीवका जब कितना ही काल निकल जाता है तब पुनः जो कर्म बंधते हैं