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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहणीय-उवसामणा
$ १२१. कुदो १ घादिकम्माणं व अघादिकम्मस्सेदस्स विसोहिवसेण सुट्ट ट्ठिदिबंधोसरणासंभवादो । एदस्सेवत्थ विसेसस्स फुडीकरणडुमुत्तरो सुत्तपबंधो-
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* तिन्हं पि कम्माणं द्विदिगंधस्स वेदणीयस्स ट्ठिदिगंधादो ओसरंतस्स णत्थि विप्पो संखेज्जगुणहीणो वा विसेसहीणो वा, एकसराहेण असंखेज्जगुणहीणो ।
$ १२२. जहा मोहणीयट्ठिदिबंधस्स णाणा-वरणादिट्ठिदिबंधादो णामागोदट्ठदिबंधादो च ओसरतस्स असंखेज्जगुणहीणं मोत्तूण णत्थि अण्णो वियप्पो एवमेत्थ वि तिण्डं घादिकम्माणं द्विदिबंधस्स वेदणीयट्ठिदिबंधादो हेट्ठा ओसरमाणस्स असंखेज्जगुणमुज्झिण त्थ अण्णो वियप्पो असंखेज भागहीणो वा, संखेजभागहीणो वा संखेज्जगुणहीणो वा अहोदूण एकवारेण विसेसघादेणोवट्टिय असंखेज्जगुणहाणीए परिणदो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसन्भावो ।
* एदेण अप्पाबहुअविहिणा संखेज्जाणि द्विदिगंधसहस्वाणि बहूणि गदाणि ।
$ १२३. सुगमं ।
$ १२१. क्योंकि जिस प्रकार घातिकमका विशुद्धिके वश विशेष घात होता है उस प्रकार इस अघातिकर्मका विशुद्धिके वश बहुत स्थितिबन्धापुसरण सम्भव नहीं है । अब इसी अर्थविशेषको स्पष्ट करनेके लिये आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है
* वेदनीयकर्मके स्थितिबन्धसे तीनों ही कर्मोंका घटता हुआ स्थितिबन्ध संख्यातगुणा होन होता है या विशेष हीन होता है ऐसा कोई विकल्प नहीं है । किन्तु एक वारमें वह असंख्यातगुणा हीन हो जाता है ।
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$ १२२. जिस प्रकार मोहनीयका स्थितिबन्ध ज्ञानावरणादि कर्मोंके स्थितिबन्धसे तथा कर्म और गोत्रकर्मके स्थितिबन्धसे घटकर असंख्यात गुणाहीन होता है । इसे छोड़कर इस विषय में अन्य विकल्प सम्भव नहीं है इसी प्रकार यहाँपर भी तीनों घातिक्रमका स्थितिबन्ध वेदनीयकर्म के स्थितिबन्धसे कम होकर असंख्यातगुणा हीन होता है। इसे छोड़कर यहाँ पर असंख्यात भागहीन, या संख्यात भागहीन या संख्यात गुणाहीन इस प्रकार अन्य विकल्प नहीं है। किन्तु एक वार में विशेष घातके वश अपवर्तित होकर वह असंख्यातगुणा हीनरूपसे परिणत हुआ है यह इस सूत्रका अर्थ है ।
* इस प्रकार इस अल्पबहुत्वविधिसे बहुत संख्यात हजार स्थितिबन्ध व्यतीत हुए ।
१२३. यह सूत्र सुगम है।
विशेषार्थ — यहाँ पर मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध सबसे अल्प रह गया है। उससे नाम कर्म और गोत्रकमका स्थितिबन्ध परस्पर तुल्य होकर असंख्यातगुणा हो गया है। उससे