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गाथा १२३ ]
चरितमोहणीय - उवसामणाए करणकज्जणिद्देसो
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भागेहिं ओसरिदूण बज्झमाणस्स पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागमेत्तसिद्धीए णिप्पड -
धवलंभादो ।
* तस्स अप्पाबहुत्रं ।
$ ९४. तस्स तक्कालभावियस्स द्विदिबंधस्स सव्वेसु कम्मेसु पलिदोवमस्स संखेजदिभागपमाणेण पयट्टमाणस्स थोवबहुत्तमिदाणिं वत्तइस्सामो त्ति भणिदं होइ ।
* तं जहा ।
९५. सुगमं ।
* णामा-गोदाणं द्विदिगंधो थोवो ।
९९६. कुदो ९ पुव्यमेव पलिदोवमट्ठिदिगं बंध लद्ध
पडिबद्धविदिबंधोसरणेहि सुट्ठ ओहट्टिदत्तादो ।
संखेजेहि संखेज गुणहाणि
* मोहणीयवज्जाणं कम्माणं ठिदिबंधो तुल्लो संखेज्जगुणो ।
$ ९७. किं कारणं ? पच्छा अंतोमुहुत्तमुवरि गंतूणेदेसिं पलिदोवममेत्तट्ठिदिबंधसमुपत्तदो ।
* मोहणीयस्स द्विदिगंधो संखेज्जगुणो
$ ९८. कुदो ! एकस्सेव संखेज्जगुणहाणिपडिबद्धट्ठिदिबंधोसरणस्स ताघे
बन्ध पल्योपमके संख्यातवें भागमात्र सिद्ध होता है यह बिना बाधा के बन जाता है । * तत्काल होनेवाले स्थितिबन्धका अल्पबहुत्व |
$ ९४. 'तस्' अर्थात् तत्काल प्रवृत्त हुए सब कर्मोंके पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्धका अल्पबहुत्व इस समय बतलावेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* बह जैसे ।
$ ९५. यह सूत्र सुगम है ।
* नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे अल्प है ।
$ ९६. क्योंकि पूर्व में ही पल्योपम स्थितिवाले बन्धको प्राप्तकर संख्यात गुणहानियोंसे प्रतिबद्ध संख्यात स्थितिबन्धापसरणोंके द्वारा उक्त स्थितिबन्धको बहुत अधिक कम कर दिया गया है ।
* उससे मोहनीय कर्मके अतिरिक्त कर्मोंका स्थितिबन्ध परस्पर तुल्य होकर संख्यातगुणा है ।
$ ९७ क्योंकि पीछे की ओर अन्तर्मुहूर्त ऊपर जाकर इन कर्मोंका पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध उत्पन्न हुआ था ।
* उससे मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ।
$ ९८, क्योंकि तब मोहनीय कर्मविषयक एक ही संख्यात गुणहानिरूप स्थितिबन्धाप