________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुड़े [दसणमोहक्खवणा एवं ताव कदकरणिजकालभंतरे संभवंतमत्थविसेसं पदुप्पाइय संपहि हेट्ठिमपरूपणाविसयं किंचि अत्थविसेसं भण्णमाणो चुण्णिसुत्तयारो इदमाह
* पलिदोवमस्स असंखेजदिभागियमपच्छिमं हिदिखंडयं तस्स ठिदिखंडयस्स चरिमसमये गुणगारपरावत्ती । तदो आढत्ता ताव गुणगारपरावत्ती जाव चरिमस्स हिदिखंडयस्स दुचरिमसमयो त्ति । सेसेसु समएसु णत्थि गुणगारपरावत्ती।
११०. एदेण सुत्तेण अपुव्वकरणपढमसमयप्पहुडि जाव कदकरणिज्जचरिमसमयो ति ताव एदम्मि हेडिमट्ठाणे कम्हि गुणगारपरावत्ती अस्थि कम्हि वा णत्थि ति एसो अत्थविसेसो जाणाविदो। तं जहा–अपुवकरणपढमसमयप्पहुडि जाव पलिदोवमासंखेज्जदिभागिगचरिमट्ठिदिखंडयदुचरिमफालि ति ताव णत्थि गुणगारपरावत्ती । किं कारणं ? उदयावलियबाहिराणंतरहिदिप्पहुडि जाव गलिदसेसगुणसेढिसीसयं ताव असंखेज्जगुणसेढीए पदेसविण्णासं कादण तत्तो अणंतरोवरिमाए गोवुच्छाणमादिद्विदीए असंखेज्जगुणहीणं णिसिंचिय उवरि सव्वत्येव विसेसहीणं णिसिंचदि त्ति एदिस्से परूवणाए तत्थावट्ठिदभावेण पवुत्तिदंसणादो। तदो पलिदो
समाधान -गुणश्रेणिगोपुच्छाका माहात्म्य इसका कारण है।
इसप्रकार सर्व प्रथम कृतकृत्यके कालके भीतर होनेवाले अर्थविशेषका कथन कर अब अधस्तन प्ररूपणाविषयक कुछ अर्थविशेषका कथन करते हुए चूर्णिसूत्रकार इस सूत्रको कहते हैं
* पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण जो अन्तिम स्थितिकाण्डक है उस स्थितिकाण्डकके अन्तिम समयमें गुणकारपरावृत्ति होती है । तथा वहाँसे लेकर अन्तिम स्थितिकाण्डकके द्विचरम समय तक यह गुणकारपरावृत्ति होती है। शेष समयोंमें गुणकारपरावृत्ति नहीं होती।
$ ११०. इस सूत्र द्वारा अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर कृतकृत्य जीवके अन्तिम समय तक इस सूत्रमें किस अधस्तन स्थानमें गुणकारपरावृत्ति है अथवा कहाँ नहीं है इस अर्थ विशेषका ज्ञान कराया गया है । यथा-अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण अन्तिम स्थितिकाण्डककी द्विचरम फालि तक गुणकारपरावृत्ति नहीं है, क्योंकि उदयावलि बाह्य अनन्तर स्थितिसे लेकर गलित शेष गुणश्रेणिशीर्षतक असंख्यातगुणित श्रेणिरूपसे प्रदेशविन्यास करके उससे अनन्तर उपरिम गोपुच्छाकी आदि स्थितिमें असंख्यातगुणे हीन प्रदेशपुञ्जका निक्षेपकर ऊपर सर्वत्र ही विशेष हीन प्रदेशपुञ्जका निक्षेप करता है, इसलिए इस प्ररूपणाके अनुसार वहाँ अवस्थितरूपसे प्रवृत्ति देखी जाती है । इसलिए पल्यो
१. ता०प्रतौ हेछिमद्धाणे इहि पाठः ।