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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७ सिया संखेज्जा सिया असंखेज्जा।
$९८. कुदो एवं ?कोहस्स जहण्णपरित्तासंखेज्जमेत्तेसु उवजोगेसु जादेसु तदो विसेसाहियमद्धाणं गंतूण माणस्स असंखेज्जोवजोगाणं पारंभदंसणादो। माया-लोभाणं पि तत्तो संखेज्जगुणमद्धाणमप्पप्पणो पडिभागेण गंतूण तदो असंखेज्जोवजोगविसयसमुप्पत्तिदंसणादो। तम्हा जत्थ कोहोवजोगा असंखेज्जा तत्थ सेसोवजोगा सिया संखेज्जा सिया असंखेज्जा त्ति सिद्धमविरुद्धं । ..
* जत्थ मागोवजोगा असंखेजा तत्थ कोहोवजोगा णियमा असंखेजा।
६ ९९. कुदो १ कोहस्स असंखेज्जोवजोगेसु पारद्धेसु तत्तो विसेसाहियमद्धाणं गंतूण माणस्सासंखेज्जोवजोगाणं पारंभदंसणादो।।
* सेसा भजियव्वा।
$ १००. कुदो ? मायालोभोवजोगाणं णिरुद्धविसयसंखेज्जाणमसंखेज्जाणं च संभवे बाहाणुवलंभादो ।
* जत्थ मायोवजोगा असंखेज्जा तत्थ कोहोवजोगा माणोवजोगा णियमा असंखेजा। कषायोंके उपयोग संख्यात भी होते हैं और असंख्यात भी होते हैं ।
5 ९८. शंका-ऐसा किस कारणसे है ?
समाधान-क्रोधकषायके जघन्य परीतासंख्यातप्रमाण उपयोगोंके होने पर उससे विशेष अधिक स्थान जाकर मानकषायके असंख्यात उपयोगोंका प्रारम्भ देखा जाता है। माया और लोभोंके भी उससे अपने-अपने प्रतिभागके अनुसार संख्यातगुणे स्थान जाकर असंख्यात उपयोगोंके विषयकी उत्पत्ति देखी जाती है। इसलिए जहाँ क्रोधकषायके उपयोग असंख्यात हैं वहाँ शेष कषायोंके उपयोग संख्यात भी हैं और असंख्यात भी हैं यह विना विरोधके सिद्ध हुआ।
___* जिस भवमें मानकषायके उपयोग असंख्यात होते हैं वहाँ क्रोधकषायके उपयोग नियमसे असंख्यात होते हैं।
६९९. क्योंकि क्रोधकषायके असंख्यात उपयोगोंका प्रारम्भ होनेपर वहाँसे विशेष अधिक स्थान जाकर मानकषायके असंख्यात उवयोगोंका प्रारम्भ देखा जाता है।
* शेष कषायोंके उपयोग भजनीय हैं।
$ १००. क्योंकि वहाँ पर मायाकषाय और लोभकषायके उपयोगोंके संख्यात या असंख्यात होनेमें कोई बाधा नहीं पाई जाती।
* जिस भवमें मायाकषायके उपयोग असंख्यात होते हैं वहाँ क्रोध और मानकषायके उपयोग नियमसे असंख्यात होते हैं ।