________________
३२
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ उवजोगो ७ ९६ ६ ६ लोभागरिसाणमदिरेयपरिवाडीओ समाणिय पुणो लोभो माया कोधो माणो त्ति एवमसंखेज्जवारे गंतूण तदो मायागरिसो एगवारमहिओ लब्भदे २ ३ २२। एवमणेण विहाणेण मायागरिसा वि असंखेज्जवारमहिया लद्धा हवंति । एवमेसा विदियपरिवाडी एदेण सुत्तेण परूविदा ।
६० संपहि एदीए परिवाडीए असंखेज्जेसु मायागरिसेसु अहिएसु समइक्कतेसु तदो अण्णाए परिवाडीए पारंभो होदि त्ति जाणावणट्ठमुवरिमसुत्तमोइण्णं
* असंखेज्जेहि मायागरिसेहिं अदिरेगेहिं गदेहिं माणागरिसेहिं कोधागरिसा अदिरेगा होदि।
६६१. एत्थ वि अवयवत्थपरूवणा सुगमा त्ति तमुज्झियूण समुदायत्थं चेव वत्तइस्सामो। तं जहा-मायागरिसेसु असंखेज्जेसु अदिरित्तेसु गदेसु लोभो माया कोधो माणो त्ति ताए चेवावद्विदपरिवाडीए ९६ ६ ६ एदाओ लोभागरिसाणमदिरेयपरिवाडीओ समाणिय पुणो लोभो माया कोधो माणो त्ति असंखेज्जवारे गंतूण तत्थ २ ३ २ २ है। फिर भी उसी परिपाटीके अनुसार इन ९६ ६ ६ लोभसम्बन्धी परिवर्तनवारोंकी अतिरिक्त परिपाटियोंको समाप्त कर पुनः लोभ, माया, क्रोध, मान इस विधिसे असंख्यातवार जाकर तदनन्तर मायासम्बन्धी परिवर्तनवार एक वार अतिरिक्त प्राप्त होता है। उसकी संदृष्टि २ ३ २ २ है। इस प्रकार इस विधिसे मायासम्बन्धी परिवर्तनवार भी असंख्यातवार अधिक प्राप्त होते हैं। इस प्रकार यह दूसरी परिपाटी इस सूत्र द्वारा कही गई है।
विशेषार्थ-पूर्व में लोभसम्बन्धी परिवर्तनवार अन्य कषायोंसम्बन्धी परिवर्तनवारोंसे अतिरिक्त किस विधिसे प्राप्त होते हैं यह बतला आये है। यहाँ मायासम्बन्धी परिवर्तनवार क्रोधसम्बन्धी परिवर्तनवारोंसे अतिरिक्त कैसे प्राप्त होते हैं यह बतलाया गया है। टीकामें इसका जो स्पष्टीकरण किया है उससे मालूम होता है कि जब सब परिपाटियोंके अनुसार लोभसम्बन्धी असंख्यात परिवर्तनवार अतिरिक्त हो लेते हैं तब एकबारमायासम्बन्धी परिवर्तनवार अधिक होता है और यह क्रम मायासम्बन्धी असंख्यात परिवर्तनवारोंके अतिरिक्त होने तक चलता रहता है। यह दूसरी परिपाटी है जो इस सूत्रद्वारा सूचित की गई है।
६०. अब इस परिपाटीके अनुसार असंख्यात मायासम्बन्धी परिवर्तनवारोंके व्यतीत हो जानेपर उसके बाद अन्य परिपाटीका प्रारम्भ होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र आया है___* इस प्रकार मायासम्बन्धी असंख्यात परिवर्तनवारोंके अतिरिक्त हो जानेके बाद मानसम्बन्धी परिवर्तनवारोंसे क्रोधसम्बन्धी परिवर्तनवार अतिरिक्त होता है।
६१. यहाँ पर भी अवयवार्थ प्ररूपणा सुगम है, इसलिए उसे छोड़कर समुच्चयरूप अर्थको ही बतलावेंगे। यथा-मायासम्बन्धी असंख्यात परिवर्तनवारोंके अतिरिक्त हो जानेपर लोभ, माया, क्रोध, मान इस प्रकार उसी अवस्थित परिपाटीके अनुसार ९६६६ इन लोभसम्बन्धी परिवर्तनवारोंकी अतिरिक्त परिपाटियोंको समाप्त कर पुनः लोभ, माया
१. ता०प्रतौ परिणामिदत्तादो इति पाठः ।