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गाथा ६३ ]
पढमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा
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९३३. संपहि आदेसपरूवणाए कीरमाणाए तिरिक्ख- मणुसगदीसु णत्थि णाणत्तं । णिरयगदीए जहण्णिया लोभद्धा थोवा, जहणिया मायद्धा संखेजगुणा, जहणिया माणद्धा संखेजगुणा, जहण्णिया कोधद्धा संखेज्जगुणा, उक्कस्सिया लोभद्धा संखेजगुणा, उक्कस्सिया मायद्धा संखेजगुणा, उक्कस्सिया माणद्धा संखेञ्जगुणा, कस्सिया कोद्धा संखेज्जगुणा । एवं देवगदीए वि । णवरि विलोमेण णेदव्वं जाव उक्कस्सिया लोभद्धा संखेजगुणा त्ति । एसो चदुगदी पादेकमप्पाचहुअणिद्देसो सुत्तयारेण किण्ण कओ १ ण, उवरिमचउगइसमासप्पा बहुएणेव जाणिजदिति तदपरूवणादो ।
* तेणेव उवदेसेण चउगइसमासेण अप्पाबहुअं भणिहिदि ।
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$ ३४. तेणेव पवाइअंतेण उवदेसेण चदुगदीओ सपिंडिऊणप्पा बहुअं कीरदित्ति भणिदं होदि । तं पुण चउगइसमासप्पाबहुअं तिविहं- जहण्णपदे उक्कस्सपदे जहण्णुकस्सपदे चेदि । तत्थ आदिल्लदुगं जहण्णुक्कस्सपदप्पाबहुअपरूवणेणेव जाणिञ्जदि सि तमेव परूवेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* चदुगदिसमासेण जहष्णुक्कस्सपदेण णिरयगदीए जहण्णिया
$ ३३. अब आदेशकी अपेक्षा कथन करने पर तिर्यञ्चगति और मनुष्यगति में कषायों के कालकी अपेक्षा कोई भेद नहीं है । नरकगतिमें लोभका जघन्य काल सबसे स्तोक है। उससे मायाका जघन्य काल संख्यातगुणा है। उससे मानका जघन्य काल संख्यातगुणा है । उससे क्रोधका जघन्य काल संख्यातगुणा है। उससे लोभका उत्कृष्ट काल संख्यात संख्यातगुणा है । उससे मायाका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । उससे मानका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । उससे क्रोधका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। इसी प्रकार देवगति में भी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि लोभका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है इस स्थानके प्राप्त होनेतक विलोमक्रमसे जानना चाहिए ।
शंका – चारों गतियोंमें पृथक-पृथक अल्पबहुतत्वका निर्देश सूत्रकारने क्यों नहीं किया ? समाधान — नहीं, क्योंकि आगे कहे जानेवाले चारों गतियोंके समुच्चयरूप अल्पबहुत्वके कथनसे ही उसका ज्ञान हो जाता है, इसलिए सूत्रकारने चारों गतियोंमें पृथक-पृथक_ अल्पबहुत्वका निर्देश नहीं किया ।
समुच्चयरूपसे अल्पबहुत्वका
* उसी उपदेशके अनुसार चारों गतियोंमें कथन करेंगे ।
$ ३४. उसी प्रवाह्यमान उपदेशके अनुसार चारों गतियोंमें एक साथ अल्पबहुत्वका कथन करते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । परन्तु चारों गतियोंमें समुच्चयरूप वह अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है - जघन्यपद, उत्कृष्टपद और जघन्योत्कृष्टपद । उनमेंसे जघन्योत्कृष्टपदरूप अल्पबहुत्वसे आदिके दो अल्पबहुत्वोंका ज्ञान हो जाता है, इसलिए उसीका कथन करते हुए आगेका सूत्र कहते हैं
* चारों गतियोंमें समुच्चयरूपसे कथन करनेपर जघन्योत्कृष्ट पदकी अपेक्षा