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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
मदरमोक ड्डियूण वेदेमाणो अंतरं विणासेदिति परमगुरूवएसा दो । १७ ।
* जहण्णिया आबाहा संखेज्जगुणा ।
[ सम्मत्ताणियोगद्दारं १०
$ १८४. एसा जहणिया आबाहा कत्थ गहेयव्वा ? मिच्छत्तस्स ताव चरिमसमयमिच्छादिट्टिणा णवकबंधविसए गहेयव्वा । तत्तो अण्णत्थ मिच्छत्तस्स सव्वहावाहावलंभादो । सेसकम्माणं पुण गुणसंकमचरिमसमयणवकबंध जहण्णाबाहा घेत्तव्वा । उवरि किण्ण घेप्पदे १ ण, गुणसंकमकालं वोलिय विज्झादे पदिदस्स मंदविसोही ट्ठिदिबंधो वह ति तव्विसयाबाहाए सव्वजहण्णत्ताणुववत्तीदो । एसा च अंतरायामादो संखेज्जगुणा । कुदो एवं णव्वदे १ एदम्हादो चेव परमागमवक्कादो । १८ ।
उससे आगे तीनों कर्मोंमेंसे किसी एकका अपकर्षणकर उसका वेदन करता हुआ अन्तरको समाप्त करता है ऐसा परम गुरुका उपदेश है । १७ ।
विशेषार्थ — अन्तरकरण के समय प्रथम स्थिति और उपरितन स्थितिके मध्य की जितनी स्थितिको उक्त दोनों स्थितियोंमें निक्षेपकर अन्तर करता है उस अन्तर के काल में यह जीव उपशम सम्यक्त्वको प्राप्तकर अन्तरके संख्यातवें भागप्रमाण कालतक हीं यह जीव उपशमसम्यग्दृष्टि रहता है, इसलिये उपशान्ताद्धासे अन्तरके कालको संख्यातगुणा कहा है ऐसा परम्परासे गुरुका उपदेश चला आ रहा है ।
* उससे जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है ।
$ १८४. शंका — यह जघन्य आबाधा कहाँकी लेनी चाहिए ?
समाधान — अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके जो नवकबन्ध होता है उसकी लेनी चाहिए, क्योंकि उस स्थलके सिवाय अन्यत्र मिथ्यात्वको जघन्य आबाधा नहीं उपलब्ध होती । परन्तु शेष कर्मोंका गुणसंक्रमके अन्तिम समय में जो नवक बन्ध होता है उसकी जघन्य आबाधा लेनी चाहिए ।
शंका- इससे और आगेके कालकी क्यों नहीं ली जाती
समाधान — नहीं, क्योंकि गुणसंक्रमके कालको उल्लंघनकर विध्यात संक्रमको प्राप्त हुए जीव मन्द विशुद्धिवश स्थितिबन्ध वृद्धिंगत होता है, इसलिये वहाँकी आबाधा सबसे जघन्य नहीं हो सकती । और यह अन्तरायामसे संख्यातगुणी है ।
शंका- ऐसा किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान — इसी परमागमके वाक्यसे जाना जाता है । १८ ।
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विशेषार्थ – यहाँपर अन्तरायामसे जिस जघन्य आबाधाको संख्यातगुणा बतलाया गया है वह यदि मिथ्यात्वकर्मके बन्धकी ली जाती है तो प्रकृतमें अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समय में मिथ्यात्व कर्मका जो सबसे जघन्य बन्ध होता है उसकी लेनी चाहिए, क्योंकि प्रकृतमें मिथ्यात्व कर्म का इससे जघन्य बन्ध अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयको छोड़ अन्यत्र - तीनों