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गाथा ९४ ] दंसणमोहोवसामणा
२७३ * जा तम्हि टिदिबंधगद्धा तत्तिएण कालेण अंतरं करेमाणो गुणसेढिणिक्खेवस्स अग्गग्गादो संखेज्जदिभागं खंडेदि ।
. १४८. एदेण सुत्तेण अंतरकरणं करेमाणस्स कालपमाणमंतरट्ठमागाइदठिदीणं पमाणावहारणं पढमट्ठिदिदीहत्तं च परूविदं होइ । तं जहा-अंतरं करेमाणो केत्तियमेत्तेण कालेणंतरं करेदि ति पुंच्छिदे 'जा तम्हि द्विदिबंधगद्धा तत्तिएण कालेण करेदि' त्ति णिद्दिढें । एदेण वयणेणेगसमएण दोहि तीहि वा समएहिं एवं जाव संखेज्जासंखेजेहिं वा समएहिं अंतरकरणसमत्ती ण होइ । किंतु अंतोमुहुत्तेणेव होइ ति जाणाविदं । __$१४९. संपहि एदेण कालेणंतरं करेमाणो केत्तियमेत्तीओ द्विदीओ घेत्तूण केत्तियमेति वा पढमहिदि ठविय अंतरं करेदि त्ति पुच्छाए णिण्णयं करिस्सामो । तं जहा—'गुणसेढिणिक्खेवस्स अग्गग्गादो' एत्थ गुणसेढिणिक्खेवो त्ति वुत्ते जो अपुव्वकरणस्स पढमसमए अणियट्टिकरणद्धाहिंतो बिसेसाहियायामेण णिक्खित्तो गलिदसेससरूवेणेत्तियकालमागदो तस्स गहणं कायव्वं । तस्स अग्गग्गमिदि भणिदे गुणसेढिसीसयस्स गहणं कायव्वं । ततो प्पहुडि हेट्ठा संखेज्जदिभागं खंडेदि त्ति भणिदे सयलस्सगुणसेढिआयामस्स तकालं दीसमाणस्स संखेज्जदिभागभूदो जो अणियट्टिअद्धादो अच्छिदो
* उस समय जितना स्थितिबन्धककाल है उतने कालके द्वारा अन्तरको करता हुआ गुणश्रेणिनिक्षेपके अग्राग्रसे अर्थात् गुणश्रेणिशीर्षसे लेकर ( नीचे) गुणश्रेणि आयामके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिनिषेकोंका खण्डन करता है।
१४८. इस सूत्रद्वारा अन्तरकरण करनेवाले जीवके कालका प्रमाण, अन्तर करनेके लिये ग्रहण की गई स्थितियोंके प्रमाणका अवधारण तथा प्रथम स्थितिकी दीर्घता इन तीनका कथन किया गया है। यथा-अन्तर करनेवाला कितने कालके द्वारा अन्तर करता है ऐसी
र 'जो उस समय स्थितिबन्धका काल हैं उतने कालक द्वारा करता है' यह निर्दिष्ट किया है। इस वचनसे यह जताया गया है कि एक समयद्वारा अथवा दो या तीन समयोंद्वारा इसप्रकार संख्यात और असंख्यात समयोंद्वारा अन्तरकरणविधि समाप्त नहीं होती है, किन्तु अन्तर्मुहूर्तकालके द्वारा ही यह विधि समाप्त होती है।
६ १४९. अब इतने कालके द्वारा अन्तरको करता हुआ मात्र कितनी स्थितियोंको ग्रहणकर तथा कितनी प्रथम स्थितिको स्थापितकर अन्तर करता है ऐसी पृच्छा होनेपर निर्णय करते हैं । यथा-'गुणसेढिणिक्सेवस्स अग्गग्गादो' इस वचनमें 'गुणश्रेणिनिक्षेप' ऐसा कहने पर जो अपूर्वकरणके प्रथम समय में अनिवृत्तिकरणके कालसे विशेष अधिक आयामरूपसे निक्षिप्त द्रव्य गलित शेषरूपसे इतने काल तक आया है उसका ग्रहण करना चाहिए। उसका अग्राम ऐसा कहने पर गुणश्रेणिशीर्षका ग्रहण करना चाहिए । 'उससे लेकर नीचे संख्यातवें भागका खण्डन करता है ऐसा कहने पर जो उस समय दिखाई देता है ऐसे समस्त गुणश्रेणि आयामका संख्यातवाँ भागरूप जो अनिवृत्तिकरणके कालसे उपरिम विशेष अधिक निक्षेप है
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