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* एवं
समयो त्ति ।
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे णिव्वग्गणकंडयमंतो मुहुत्तद्धमेरां
[ सम्मत्ताणियोगद्दारं १० अधापवत्तकरणचरिम
णिव्वग्गणकंडयमवडिदं
$ १०१. एवमेदीए दिसाए अंतोमुहुत्तद्धमेत्तमेगं कादूण जहण्णुकस्सपरिणामाणमुवरिमहेडिमाणमप्पा बहुअं कायव्वं जाव सव्वणिव्वग्गणकंडयाणि जहाकममुल्लंघियूण पुणो दुचरिमणिव्वग्गणकंडेय चरिमसमयउक्क स्सवि सोहीदो अधापवत्तकरणचरिमसमए जहण्णिया विसोही अनंतगुणा होदूण जहण्णविसोहीणं पञ्जवसाणं पत्ते त्ति । एद्दूरं जाव एगंतरिदजहण्णुक्कस्सविसो हिट्ठाण पडिबद्धाए पयदप्पाबहुअपरूवणाए णत्थि णाणत्तमिद वृत्तं होइ ।
१०२. संपहि देण सुत्तेण सूचिदत्थस्स किंचि विवरणं कस्सामो । तं जहापढमणिव्वग्गणकंडय विदियसमए उक्कस्सविसोहीदो उवरि विदियणिव्वग्गणकंडय विदियसमए जहणविसोही अनंतगुणा । एदम्हादो उवरि पढमणिव्वग्गणकंडयतदियसमए उक्कस्सिया विसोही अनंतगुणा । एदिस्से उवरि विदियणिव्वग्गणकंडय तदियसमए
है और यह उत्कृष्ट विशुद्धि उसी खण्डके अन्तिम परिणामस्वरूप है जो षट्स्थानपतित असंख्यात लोकप्रमाण वृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त हुई है ।
* इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त कालप्रमाण एक (प्रत्येक) निर्वर्गणाकाण्डकको अवस्थित कर अधःप्रवृत्तकरण के अन्तिम समय तक अल्पबहुत्व जानना चाहिए ।
$ १०१. इस प्रकार इस पद्धतिसे अन्तर्मुहूर्त' कालप्रमाण एक निर्वर्गणाकाण्डकको अवस्थित कर उपरिम और अधस्तन जघन्य और उत्कृष्ट परिणामोंका अल्पबहुत्व करना चाहिए। और यह सब अल्पबहुत्व सब निर्वर्गणाकाण्डकोंको क्रमसे उल्लंघन कर पुनः द्विचरमनिर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयकी जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी होकर जघन्य विशुद्धिका अन्त प्राप्त होने तक करना चाहिए। इतने दूर तक जो एक-एक निर्वर्गणाकाण्डक के अन्तरसे जघन्य और उत्कृष्ट विशुद्धिस्थानोंसे प्रतिबद्ध प्रकृत अल्पबहुत्व कहा है उसमें कोई भेद नहीं है यह उक्त कथनका पर्य है ।
विशेषार्थ — यह परस्थान अल्पबहुत्व बतलानेका प्रकरण है, इसलिये पूर्वमें ऊपर और नीचे के परिणामोंकी विशुद्धिका जो अनुकृष्टि पद्धतिसे अल्पबहुत्व बतलाया गया है वह आगे के परिणामोंमें किस प्रकारका है यह बतलानेके लिए यह सूत्र आया है । इस विषयका विशेष स्पष्टीकरण आगे श्री जयधवला जीमें स्वयं किया ही है ।
$ १०२. अब इस सूत्रसे सूचित हुए अर्थका कुछ विवरण करेंगे । यथा - प्रथम निर्वर्गणाकाण्डक के दूसरे समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे ऊपर दूसरे निर्वर्गणाकाण्डक के दूसरे समयकी जघन्य त्रिशुद्धि अनन्तगुणी है । इससे ऊपर प्रथम निर्वर्गणाकाण्डक के तीसरे समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी है। इससे ऊपर दूसरे निर्वर्गकाण्डकके तीसरे समय की जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी है। इससे ऊपर प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके चौथे समयकी उत्कृष्ट