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गाथ ६८]
छट्ठगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा $ १९९. संपहि पयदपरूवणाए अवसरकरण8 पुच्छावकमाह* तं जहा।
२००. सुगमं ।
* जे अस्सि समए माणोवजुत्ता तेसिं तीदे काले माणकालो णोमाणकालो मिस्सयकालो इदि एवं तिविहो कालो।
$२०१. जे जीवा एदम्मि वट्टमाणसमये माणोवजुत्ता अणंता होदूण दीसंति तेसिं तीदे काले तिविहो कालो वोलीणो—माणकालो णोमाणकालो मिस्सयकालो चेदि । तत्थ जम्मि कालविसेसे एसो आदिट्ठो वट्टमाणसमयमाणोवजुत्ता जीवरासी अणूणाहिओ होदूण माणोवजोगेणेव परिणदो लब्भइ सो माणकालो त्ति भण्णइ । एसो चेव णिरुद्धजीवरासो जम्मि कालविसेसे एगो वि माणो अहोदण कोह-माया-लोमेसु चेव जहापविभागं परिणदो सो णोमाणकालो त्ति भण्णदे माणवदिरित्तसेसकसायाणं नोमानकाल और तीसरे उत्तरके अनुसार मिश्रकाल ये उनकी संज्ञायें हैं। जो जीव वर्तमान समयमें मानकषायसे उपयुक्त हैं वे सबके सब यदि अतीत कालमें मानकषायसे उपयुक्त थे भविष्यकालमें मानकषायसे उपयुक्त रहेंगे तो उनके उस कालकी मानकाल संज्ञा है। इसी प्रकार जो जीव वर्तमान समयमें मानकषायसे उपयुक्त हैं वे सबके सब अतीतकालमें यदि मानके सिवाय अन्य कषायसे उपयुक्त थे या अन्य कषायसे उपयुक्त रहेंगे तो उनके उस कालकी नोमानकाल संज्ञा है। तथा इसी प्रकार जो जीव वर्तमान समयमें मानकषायसे उपयुक्त हैं उनमेंसे कुछ तो अतीत कालमें मानके सिवाय अन्य कषायसे उपयुक्त थे और कुछ मानकषायसे उपयुक्त थे या कुछ अन्य कषायसे उपयुक्त रहेंगे और कुछ मानकषायसे उपयुक्त रहेंगे तो उनके उस कालकी मिश्रकाल संज्ञा है। यह मानकषायको विवक्षित कर कालके भेदोंका निरूपण है । इसी प्रकार अन्य कषायोंको विवक्षित कर आगमानुसार कालके भेदोंका निरूपण कर लेना चाहिए। यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि जब जो कषाय विवक्षित हो तब उसके अनुसार कालके भेदोंकी संज्ञा हो जाती है। जैसे क्रोधकाल, नोक्रोधकोल और मिश्रकाल आदि।
$ १९९. अब प्रकृत प्ररूपणाका अवसर करनेके लिए पृच्छावाक्यको कहते हैं* वह जैसे ।
२००. यह सूत्र सुगम है।
* जो जीव इस समय मानकषायसे उपयुक्त हैं उनका अतीत कालमें मानकाल, नोमानकाल और मिश्रकाल इस प्रकार तीन प्रकारका काल व्यतीत हुआ है।
६२०१. जो इस अर्थात् वर्तमान समयमें मानकषायमें उपयुक्त अनन्त जीव दिखलाई देते हैं उनका अतीतकालमें तीन प्रकारका काल व्यतीत हुआ है-मानकाल, नोमानकाल और मिश्रकाल। उनमें से जिस कालविशेषमें यह विवक्षित वर्तमान समयमें मानकषायमें उपयुक्त हुई जीवराशि न्यूनाधिक हुए विना मानोपयोगसे ही परिणत होकर प्राप्त होती है उसे मानकाल कहते हैं । तथा यही विवक्षित जीवराशि जिस कालविशेषमें एक भी मानरूप न होकर यथाविभाग क्रोध, माया और लोभरूपसे ही परिणत हुई उस कालविशेषको नोमानकाल कहते हैं, क्योंकि मानके सिवाय शेष कषायें नोमान संज्ञाके योग्य हैं इस विवक्षाका यहाँ अवलम्बन लिया गया