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________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए एयजीवेण कालो ७३ जह० जह० एगस०, उक्क० वे समया । अजह० जह० एगस०, उक्क० तिणि पलिदो ० पुव्वकोडिपुध० अणंतकालमसंखेजा० । एवं पंचिदियतिरिक्खतिये | णवरि मिच्छ० सगट्टिदी | णवुंस० उक्क० पुव्वकोडिपुध ० । वेदा जाणियव्वा । जोणिणीसु सम्म० जह० एगस०, उक्क० वेसमया । सेसं तं चैव । पंचिदियतिरिक्खअपज्ञ :- मणुसअप ० सव्वपयडी ० ० जह० जह० एगस०, उक्क० वे समया । अजह० जह० एगस ०, उक्क० अंतोमु० । $ १८४. मणुसतिए पंचिदियतिरिक्खतियभंगो । णवरि सव्वपयडी ० जह० जणुक० एस० । सम्म० अजह० जह० अंतोमु०, पज्ज० एस० । $ १८५. देवेसु मिच्छ० जह० जहण्णुक्क० एस० । अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० एकत्तीस सागरोमाणि । सम्म० जह० जहण्णुक्क एगस० । अजह० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीस सागरो० । सम्मामि ० - सोलसक० - छण्णोक० पढमाए भंगो । वर हस्स - रदि० अज० जह० एस ०, उक्क० छम्मासं । इत्थिवेद - पुरिसवेद० जह० जह० एस ०, उक्क० वे समया । अजह० जह० एगस०, उक्क० पणवण्णं पलिंदो ० समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो वेदोंका पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है और नपुंसक - वेदका अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनोंके बराबर है । इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च त्रिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अजघन्य अनुभागके उदीरकका उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । नपुंसकवेदके अजघन्य अनुभागके उदीरकका उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। जिसके जो वेद है उसे जान लेना चाहिए । योनिनियों में सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । शेष काल वही है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट, काल दो समय है। अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल मुहूर्त है। 1 $ १८४. मनुष्यत्रिक पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि सब प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सम्यक्त्वके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । मनुष्यपर्याप्तकों में एक समय है । $ १८५. देवोंमें मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल " एक समय है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल इकतीस सागरोषम है । सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है | अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है । सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकपायोंका भंग पहली पृथिवीके समान है । इतनी विशेषता है कि हास्य और रतिके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह महीना है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अजघन्य १०
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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