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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए एगजीवेण कालो सिद्धं । संपहि सव्वेसिमजहण्णाणुभागुदीरणाए जहण्णुक्कस्सकालपमाणावहारणट्ठमुत्तरसुत्तमाह * अजहणणाणुभागुदीरणा पयडिउदीरणाभंगो। $ १८१. पयडिउदीरणाकालादो एदेसिमजहण्णाणुभागुदीरणाकालस्स भेदाभावादो । तदो सुत्तसमप्पिदत्थविसए सुहावगमुप्पायणट्ठमादेसपरूवणटुं च उच्चाणाणुगममेत्थ कस्सामो । तं जहा—जहण्णए पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० जह० अणुभागुदी० जह० उक्क० एयस० अजह० तिणि भंगा। जो सो सादि० सपजव० तस्स जह० अंतोमु०, उक्क० उवड्डपोग्गलपरियट्ट । सोलसक०-भय-दुगुंछ० जह० जहण्णुक्क० एगस० । अजह० जह० एगस०, उक० अंतोमुहुत्तं । इत्थिवे०-पुरिसवे०-णqस० जह० जहण्णुक्क० एगस० । अजह० जह. एगस० अंतोमु० एगस०, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं सागरोवमसदपुधत्तं अणंतकालमसंखे०पो०परि० । हस्स-रदि-अरदि-सोग० जह० जहण्णुक० एगस० । अजह० जह० एगस०, उक्क० छम्मासं तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । सम्म०-सम्मामि० जह०. अजह० उक्कस्साणुक्कस्सभंगो। अब सब प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभागकी उदीरणाके जघन्य और उत्कृष्ट कालके प्रमाणका अवधारण करनेके लिए आगेका सूत्र कहते है * अजघन्य अनुभाग उदीरणाकी कालविषयक प्ररूपणा प्रकृति उदीरणाके समान है। ६१८१. क्योंकि प्रकृति उदीरणाके कालसे इनके अजघन्य अनुभागउदीरणाके कालमें कोई अन्तर नहीं है । यतः सूत्र द्वारा प्राप्त अर्थके विषयमें सुखपूर्वक ज्ञान होजाय अतः और आदेशका कथन करनेके लिए यहाँ पर उच्चारणाका अनुगम करते हैं। यथा-जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दोप्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य अनुभागके उदीरकके तीन भंग हैं । उनमें जो सादि-सान्त भंग है उसका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल उपाध पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्ये अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुसकवेदके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल क्रमसे एक समय, अन्तर्मुहूर्त और एक समय है और उत्कृष्ट काल क्रमसे सौ पल्योपम पृथक्त्वप्रमाण, सौ सागरोपम पृथक्त्वप्रमाण और अनन्त काल है, यह अनन्त काल असंख्यात पुद्गल परिवर्तनोंके बराबर है। हास्य, रति, अरति और शोकके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कष्ट काल क्रमसे छह महीना और साधिक तेतीस सागरोपम है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वक जघन्य और अजघन्य अनुभागक उदारकक कालका भंग उत्कृष्ट और अनुत्कृष्टके समान है।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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