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________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए एयजीवेण कालो ६५ $ १६३. कुदो ? वेदगसम्मत्तं घेत्तूण सव्वजहणणंतोमुहुत्तेण कालेन मिच्छत्तं पडवण्णम्मि अणुकरसजहण्णकालस्स तप्यमाणत्तोवलंभादो । * उक्कस्सेण छावट्ठिसागरोवमाणि आवलियूणाणि । $ १६४. कुदो ? वेदगसम्मत्त उक्कस्सकालस्सावलियूणस्स पयदुक्कस्सकालत्तेणावलंबियत्तदो । कुदो आवलियूणत्तमिदि चे' ? छावट्टिसागरोवमाणमवसाणे अंतोमुहुत्तसेसे दंसणमोहणीयं खवेंतस्स सम्मत्तपढमट्ठिदीए समयाहियावलियमेत्तसे साए सम्मत्तुदीरणाए जवसाणं होई, तेणावलियूणत्तमेत्थ दट्ठव्वमिदि । * सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्साणुभागउदीरगो केवचिरं कालादो होदि ? $ १६५. सुगमं । * जहष्णुक्कस्सेण एयसमयो । $ १६६. किं कारणं १ सव्वकस्ससंकिलेसेण मिच्छत्तं पडिवजमाणसम्मामिच्छाइचिरिमसमए चैव सम्मामिच्छत्तु कस्साणुभागुदीरणादंसणादो । * अणुक्कस्साणुभागुदीरगो केवचिरं कालादो होदि ? $ १६३. क्योंकि वेदक सम्यक्त्वको ग्रहणकर सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा मिथ्यात्वको प्राप्त होनेपर अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल तत्प्रमाण उपलब्ध होता है । * उत्कृष्ट काल एक आवलिकम छ्यासठ सागरोपम है । $ १६४. क्योंकि वेदकसम्यक्त्वके एक आवलिकम उत्कृष्ट कालका प्रकृत उत्कृष्ट कालरूपसे अवलम्बन लिया है । शंका – एक आवलि कम कैसे ? समाधान——छयासठ सागरोपमके अन्तमें अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवके सम्यक्त्वकी प्रथम स्थितिके, समयाधिक आवलिमात्र शेष रहनेपर सम्यक्त्वकी उदीरणाका पर्यवसान होता है, इसलिए एक आवलिप्रमाण न्यूनता यहाँपर जानना चाहिए । * सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका कितना काल है ? $ १६५. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । $ १६६. क्योंकि सर्वोत्कृष्ट संलेशसे मिध्यात्वको प्राप्त होनेवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टिके अन्तिम समयमें ही सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा देखी जाती है। * अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका कितना काल है ? १. आ०प्रतौ वे इति पाठः, त०प्रतौ वे ( चे ) इति पाठः ९
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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