SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ कमेण णिण्णासिय तदो अस्सकण्णकरण-किट्टीकरणद्धाओ गमिय कोहतिण्णिसंगहकिट्टीओ वेदेमाणो तदियसंगहकिट्टीवेदयपढमट्ठिदीए समयाहियावलियमेत्तसेसाए चरिमसमयकोहवेदगो जादो, तस्स कोहसंजलणविसया जहण्णाणुभागुदीरणा होदि, हेडिमासेसउदीरणाहिंतो एदिस्से उदीरणाए अणंतगुणहीणत्तदंसणादो। * माणसंजलणस्स जहएणाणुभागउदीरणा कस्स ? १३९. सुगमं । * खवगस्स चरिमसमयमाणवेदगस्स।। $१४०. एदस्स वि सुत्तस्सत्थो अणंतरादिकंतस्स सामित्तसुत्तस्सेव वक्खाणेयव्यो। णवरि कोह-माणाणमण्णदरोदएण खवगसेढिमारूढस्स चरिमसमयमाणवेदगावत्थाए वट्टमाणस्स पयदजहण्णसामित्तं होदि त्ति वत्तव्वं । * मायासंजलणस्स जहण्णाणुभागउदीरणा कस्स ? १४१. सुगमं । * खवगस्स चरिमसमयमायावेदगस्स । $ १४२. एत्थ वि कोह-माण-मायाणमुदएण सेढिमारूढस्स पयदजहण्णसामित्तमवगंतव्वं । * लोहसंजलणस्स जहएणाणुभागउदीरणा कस्स ? तीन संग्रह कृष्टियोंका वेदन करता हुआ तृतीय संग्रहकृष्टिवेदककी प्रथम स्थितिमें एक समय अधिक एक आवलिमात्र कालके शेष रहने पर अन्तिम समयवर्ती क्रोधवेदक हो गया उसके क्रोधसंज्वलनविषयक जघन्य अनुभाग उदीरणा होती है, क्योंकि अधस्तन समस्त उदीरणाओंसे इस उदीरणाका अनन्तगुणा हीनपना देखा जाता है। * मान संज्वलनकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? $ १३९. यह सूत्र सुगम है। * अन्तिम समयवर्ती मानवेदक क्षपकके होती है। $ १४०. इस सूत्रके अर्थका भी अनन्तर अतिक्रान्त हुए स्वामित्वविषयक सूत्रके समान व्याख्यान करना चाहिए । इतनी विशेषता है कि क्रोध और मानमेंसे अन्यतरके उदयसे क्षपक श्रेणिपर आरूढ हुए तथा मानवेदकके अन्तिम समयमें होनेवाली अवस्थामें विद्यमान हुए जीवके प्रकृत जघन्य स्वामित्व होता है ऐसा यहाँ कहना चाहिए। * मायासंज्वलनको जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? $ १४१. यह सूत्र सुगम है। * अन्तिम समयवर्ती मायावेदक क्षपकके होती है। $१४२. यहाँपर भी क्रोध, मान और मायाके उदयसे भणिपर चढ़े हुए जीवके प्रकृत जघन्य स्वामित्व जानना चाहिए । * लोभसंज्वलनकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ?
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy