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________________ ४६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ अधुवा । आदेसेण णेरइय० सव्वपयडीणं उक्क० अणुक्क० जह. अजह० सादि०अधुवा वा । एवं जाव० । * एगजीवेण सामित्त । $ १०४. एत्तो एगजीवेण सामित्तमहिकयं दट्ठव्वमिदि अहियारसंभालणवक्कमेदं । * तं जहा। $ १०५. सुगमं । तं च सामित्तं दुविहं । जह० उक्क०–तत्थुक्कस्ससामित्ताणुगमो ताव कीरदे । तस्स दुविहो णिद्देसो ओघादेसभेदेण । तत्थोघपरूवणट्ठमाह * मिच्छत्तस्स उक्कस्साणुभागुदीरणा कस्स ? $ १०६. सुगमं । * मिच्छाइहिस्स सणिणस्स सव्वाहिं पजत्तीहिं पज्जत्तयदस्स उक्कस्ससंकिलिहस्स। ___$१०७. एत्थ मिच्छाइट्ठिणिद्देसो सेसगुणट्ठाणेसु पयदसामित्तसंभवासंकाणिवारणफलो । सण्णिस्से त्ति णिदेसो असण्णिपंचिंदियप्पहुडि हेट्ठिमासेसजीवसमासेसु पयदजघन्य और अजघन्य अनुभाग उदीरणा सादि और अध्रुव है । इसी प्रकार अनाहारक मागेणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ-आगे उत्कृष्ट और जघन्य स्वामित्वका जो कथन किया है उससे स्पष्ट है कि मिथ्यात्व प्रकृतिकी उत्कृष्ट,, अनुत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग उदीरणा सादि और अध्र व होती है। किन्तु अजघन्य अनुभाग उदीरणा सादि आदि चारों प्रकारकी होती है । शेष कथन सुगम है। * अब एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वका अधिकार है । . १०४. यहाँसे एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वका अधिकार जानना चाहिए इस प्रकारः अधिकारकी सम्हाल करनेवाला यह वचन है। * यथा $ १०५. यह सूत्र सुगम है। वह स्वामित्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उसमें सर्व प्रथम उत्कृष्ट स्वामित्वका अनुगम करते हैं-ओघ और आदेशके भेदसे उसका निर्देश दो प्रकारका है । उनमेंसे ओघका कथन करनेके लिए कहते हैं * मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? $ १०६. यह सूत्र सुगम है। * सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त तथा उत्कृष्ट सक्लेशको प्राप्त हुए सजी मिथ्यादृष्टिके होती है। $ १०७. यहाँ पर शेष गुणस्थानों में प्रकृत स्वामित्वकी सम्भावनाकी आशंकाका निराकरण करनेके लिए 'मिथ्यादृष्टि' पदका निर्देश किया है । असंज्ञी पञ्चेन्द्रियसे लेकर नीचेके समस्त जीवसमासोंमें प्रकृत स्वामित्वका निवारण करनेके लिए सूत्रमें 'संज्ञी' पदका निर्देश
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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