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________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सव्वउदीरणाणुगमादिणिद्देसो कस्साम । तं जहा -- सब्बुदीर० - णोसव्बुदीरणाणु० दुविहो णि० + ओषेश आदेसेण य । ओघेण सव्वपयडी० सव्वाणि फद्दयाणि उदीरेमाणस्स सम्बुदीरणा तदूणं णोसव्बुदीरणा | एवं जाव० जीero के ओर्घेण आदेसेण $ १०१. उक्क० उदी० - अणुक्क० उदीरणाणु ० दुविहो णि य । ओघेण सव्वपयडी० सन्युक्स्सयाणि अणुभागफद्दयाणि उदीरेमाणस्स उक्कस्सउदीर० । तदूणमणुक्क० उदी० । एवं जाव० । $ १०२. जह०-अअह०उदी० दुविहो णि० - ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वपयडी० सव्वजहण्णयाणि अणुभागफद्दयाणि उदी० जह० उदीरणा । तदुवरि अजह०उदीर० । एवं जाव० । ओघेण आ आसे $ १०३. सादि०-अणादि ० - धुव० - अद्ध्रुवाणु० दुविहो णि०य । ओघेण मिच्छ० उक्क० अणुक्क• जहण्णमणुभागुदीरणा किं सादिया४ १ सादिअद्ध्रुवा । अजइ० किं सादि०४ ? सादि० अणादि० धुव० अधुवा वा । सोलसक raणोक ६० - सम्म० - सम्मामि० उक्क० अणुक्क० जह० अजह० किं सादि०४१ सादि ܐ ܝ गमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके सब स्पर्धकों की उदीरणा करनेवालेके सर्व अनुभाग उदीरणा होती है और उससे कमकी उदीरणा करनेवालेके नोसर्व अनुभाग उदीरणा होती है । इसी प्रकार अनाहारक 'मार्गणा तक जानना चाहिए । $ १०१. उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा और अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके सबसे उत्कृष्ट अनुभागस्पर्धकोंकी उदीरणा करनेवालेके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा होती है और उनसे न्यून स्पर्धकोंकी उदीरणा करनेवालेके अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा होती है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । $ १०२. जघन्य अनुभाग उदीरणा और अजघन्य अनुभाग उदीरणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है। ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके सबसे जघन्य अनुभाग स्पर्धी उदीरणा करनेवालेकी जघन्य अनुभाग उदीरणा होती है और उनसे अधिक अनु भाग स्पर्धकोंकी उदीरणा करनेवालेके, अजघन्य अनुभाग उदीरणा होती है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । $ १०३. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुवानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओब और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग उदीरणा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। अजघन्य अनुभाग उदीरणा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रुव है ? सादि है, अनादि है, ध्रुव है और अनुष है । सोलह कषाय, नौ नोकषाय, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य अनुभाग उदीरणा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। आदेशसे नारकियोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट,
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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