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________________ . जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ ओघेण ओदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० वड्ढी कस्स ? अण्णद० जो उक्कस्साणुभागसंतकम्मि० उक्कस्ससंकिलेसं गदो, तदो उक्कस्साणुभागमुदीरिदो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स ? अण्णद० देवो उक्कस्साणुभागमुदीरेमाणो मदो एइंदिओ जादो, तदो तस्स पढमसमयउदीरगस्स उक्क ० हाणी । उक्क० अवट्ठाणं कस्स ? अण्णद० उक्कस्साणुभागमुदीरेमाणो तप्पाओग्गजहण्णयमुदीरिदो तस्स से काले उक्क० अवट्ठा० । ६५९. आदेसेण णेरइय० उक्क० वड्डी ओघं । उक्क० हाणी कस्स ? अण्णद० उक्क० अणुभागमुदीरेमाणो तप्पाओग्गविसोहीए पडिभग्गो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्कस्सयमवट्ठाणं । एवं सव्वणेरइय०-सव्वतिरिक्ख-सव्वमणुससव्वदेवा त्ति । णवरि पंचिं०तिरिक्खअपज्ज०-मणुसअपज्ज०-आणदादि सव्वट्ठा त्ति तप्पाओग्गसंकिलेसो भाणियव्यो । एवं जाव० ।। • ६६०. जहण्णए पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओषेण मोह० जह० वड्डी कस्स ? अण्णद० जो उवसमसेढीदो ओदरमाणगो विदियसमयउदीरगो तस्स जह० वड्डी । जह० हाणी कस्स ? अण्णद० खवगस्स समयाहियावलियसकसायस्स तस्स जह० हाणी। जह० अवट्ठाण० कस्स ? अण्ण० अधापवत्तसंजदस्स अणंतभागेण वड्डिदूणाव द्विदस्स तस्स जह० अवट्ठाणं । एवं मणुसतिये । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट अनुभागके सत्कर्मवाला जो जीव उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ, उसके बाद उसने उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा की ऐसा जीव उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जो अन्यतर देव मरा और एकेन्द्रिय हो गया, तदनन्तर प्रथम समयमें उदोरणा करनेवाला वह जीव उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जो अन्यतर जीव तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागकी उदीरणा करने लगा वह तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । ५९. आदेशसे नारकियोंमें उत्कृष्ट वृद्धिका भंग ओघके समान है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जो अन्यतर नारकी तत्प्रायोग्य विशुद्धिसे प्रतिभग्न हुआ वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। तथा वही तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, सब मनुष्य और सब देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त और आनत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें तत्प्रायोग्य संक्लेश कहना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। - $६०. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? उपशमश्रेणिसे उतरनेवाला जो अन्यतर जीव द्वितीय समयमें उदीरक है वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर क्षपक एक समय अधिक एक आवलि कालके शेष रहने पर सकषायभावसे स्थित है वह जघन्य हानिका स्वामी है। जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अधः
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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