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________________ ३६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ ___५११. कुदो ? सुहुमणिगोदुववादजोगेण बद्धजहण्णसमयपबद्धपमाणत्तादो । एत्थ गुणगारो असंखेजा लोगा। * संकमो असंखेजगुणो। ५१२. किं कारणं ? अपुव्यकरणावलियपविदुचरिमसमये अधापवत्तसंकमेण जहण्णभावावलंबणादो। एत्थ गुणगारो असंखेजाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । जोगगुणगारगुणिददिवड्डगुणहाणीए अधापवत्तभागहारेणोवट्टिदाए पयदगुणगारुप्पत्तिदंसणादो। संतकम्ममसंखेजगुणं । ६५१३. को गुणगारो ? अधापवत्तभागहारो । किं कारणं १ खविदकम्मंसियलक्खणेणागदखवगचरिमफालीए किंचूणदिवड्डगुणहाणिमेत्तएइंदियसमयपबद्धपडिबद्धाए पयदजहण्णसामित्तावलंबणादो। एवमप्पाबहुए समत्ते 'जो जं संकामेदि य एदिस्से चउत्थीए सुत्तगाहाए अत्थो समत्तो होइ । एवं 'वेदगे' त्ति अणियोगद्दारे चउण्हं सुत्तगाहाणमत्थविहाणं समत्तं । तदो वेदगेत्ति समत्तमणिओगद्दारं । णमो अरहंताणं० णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्यसाहूणं ।। ६५११. क्योंकि वह सूक्ष्म निगोद जीवके उपपाद योगसे बद्ध जघन्य समयप्रबद्धप्रमाण है। यहाँपर गुणकार असंख्यात लोक है। * उससे संक्रम असंख्यातगुणा है। $५१२. क्योंकि अपूर्वकरणके आवलि प्रविष्ट अन्तिम समयमें अधःप्रवृत्त संक्रम द्वारा जघन्यपनेका अवलम्बन लिया है। यहाँपर गुणकार पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है, क्योंकि योगगुणकारसे गुणित डेढ़ गुणहानिके अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित करनेपर प्रकृत गुणकारकी उत्पत्ति देखी जाती है। . * उससे सत्कर्म असंख्यातगुणा है । $ ५१३. शंका-गुणकार क्या है ? समाधान-अधःप्रवृत्त भागहारप्रमाण गुणकार है, क्योंकि क्षपितकर्माशिकलक्षणसे आकर कुछ कम डेढ़ गुणहानिप्रमाण एकेन्द्रियसम्बन्धी समयप्रबद्धप्रतिबद्ध क्षपककी अन्तिम फालिरूपसे प्रकृत जघन्य स्वामित्वका अवलम्बन लिया है। इस प्रकार अल्पबहुत्वके समाप्त होनेपर 'जो जं संकामेदि य' इस चौथी सूत्रगाथाका अर्थ समाप्त हुआ । इस प्रकार 'वेदक' इस अनुयोगद्वारमें चार सूत्रगाथाओंका कथन समाप्त हुआ। इस प्रकार वेदक अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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