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________________ गा० ६२ ] बंधादिपंचपदप्पा बहुअं ३६५ समयबद्धदव्वादो एसो जहण्णोदयो असंखेज्जगुणो ति सिद्धं । गुणगारो च जोगगुणगारमेत् । * संतकम्ममसंखेज्जगुणं । $ ५०८. किं कारणं ? इत्थि - णपुंसयवेदाणं खविदकम्मंसियखवगस्स चरिमफालिविदणाणंतर मेगडिदिएगसमयमेत्तकालावसेसे उदयगदगुण सेढिगो वुच्छावलंबणेण जहसामितविहाणादो । अरदि-सोगाणं च खविदकम्ससियखवगस्स सव्वसंकमचरिमफालिमस्सियूण जहण्णसामित्तपदुष्पायनादो । तदो सिद्धमसंखेज्जगुणां । एत्थ गुणगारो पलिदो० असंखे ० भागो । * हस्स-रदि-भय-दुगुं छाणं जहण्णिया पदेसुदीरणा थोवा । $ ५०९. कुदो १ सव्वुक्कस्ससंकिलिट्ठमिच्छाइट्ठिजहण्णोदीरणादव्वग्गहणादो । * उदयो असंखेज्जगुणो । $ ५१०. किं कारणं १ उवसामयपच्छायददेवस्स उदीरणोदयदव्बं घेत्तूणावलियचरिमसमये जहण्णसामित्तावलंबणादो। एत्थ गुणगारो तप्पा ओग्गासंखे०रूवाणि । * बंधो असंखेज्जगुणो । प्रबद्धप्रमाण द्रव्यसे यह जघन्योदय असंख्यातगुणा है यह सिद्ध हुआ । यहाँपर गुणाकार योग के गुणकारप्रमाण है । * उससे सत्कर्म असंख्यातगुणा है । $ ५०८. क्योंकि क्षपितकर्माशिक क्षपकके अन्तिम फालिके पतनके बाद एक समय प्रमाण एक स्थितिके शेष रहनेपर उदयगत गुणश्रेणिगोपुच्छाका अवलम्बन लेकर स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य स्वामित्वका विधान किया है। तथा क्षपितकर्माशिकक्षपकके सर्वसंक्रमकी अन्तिम फालिका आश्रयकर अरति और शोकके जघन्य स्वामित्वका प्रतिपादन किया है । इसलिए इनका सत्कर्म असंख्यातगुणा है यह सिद्ध हुआ । यहाँपर गुणकार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । * हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी जघन्य प्रदेश उदीरणा स्तोक है । $ ५०९. क्योंकि सबसे उत्कृष्ट संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टिके जघन्य उदीरणा द्रव्यको प्रकृतमें प्रण किया है। * उससे उदय असंख्यातगुणा है । $ ५१०. क्योंकि उपशामनासे आकर जो देव हुआ है उसके उदीरणोदय द्रव्यको प्रहणकर आवलिकालके अन्तिम समय में जघन्य स्वामित्वका अवलम्बन लिया है । यहाँ पर गुणकार तत्प्रायोग्य असंख्यात रूप हैं । * उससे बन्ध असंख्यातगुणा है ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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