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________________ ३४३ गा०६२] बंधादिपंचपदप्पाबहुवे ६ ४३२. किं कारणं ? हेट्ठा समयाहियावलियमेत्तमोसरिद्ण पडिलद्धजहण्णभावत्तादो। * जहण्णओ अणुभागसंकमो अणंतगुणो । ६४३३. जइ वि जहण्णोदीरणाविसये चेव ओकडुणावसेण जहण्णाणुभागसंकमो जादो तो वि तत्तो एसो अणंतगुणो। किं कारणं ? ओकड्डिजमाणाणुभागस्स अणंतभागसरूवेण उदयोदोरणाणं तत्थ पवुत्तिदंसणादो। * सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णगो अणुभागसंकमो संतकम्मं च थोवाणि। ४३४ कुदो ? दंसणमोहक्खवयअपुब्वाणियट्टिकरणपरिणामेहि सुदृ घादं पावेयूण द्विदचरिमाणुभागखंडयविसयत्तेण पडिलद्धजहण्णभावत्तादो। * जहण्णगो अणुभागउदयोदीरणा च अणंतगुणाणि। ४३५. कुदो १ घादेण विणा सम्मत्ताहिमुहचरिमसमयसम्मामिच्छाइद्विस्स तप्पाओग्गुकस्सविसोहीए उदीरिजमाणजहण्णाणुभागविसयत्तेण पयदजहण्णसामित्तावलंबणादो। . * कोहसंजलणस्स जहण्णगो अणुभागबंधो संकमो संतकम्मं च थोवाणि । $ ४३२. क्योंकि जघन्य अनुभाग सत्कर्म और उदयसे पीछे समयाधिक एक आवलिमात्र जाकर इसने जघन्यपना प्राप्त किया है। * उससे जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। ..$ ४३३. यद्यपि जघन्य अनुभाग उदीरणारूप स्थानमें ही अपकर्षणवश जघन्य अनुभागसंक्रम प्राप्त हो जाता है तो भी उससे यह अनन्तगुणा है, क्योंकि अपकर्षित होनेवाले अनुभागके अनन्तवें भागरूप उदय और उदीरणाकी वहाँ पर प्रवृत्ति देखी जाती है। * सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागसंक्रम और सत्कर्म स्तोक हैं । $ ४३४. क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण परिणामोंके द्वारा अच्छी तरह घातको प्राप्तकर स्थित हुए अन्तिम अनुभागकाण्डकको विषय करनेवाला होनेके कारण उसने जघन्यपना प्राप्त किया है। * उनसे जघन्य अनुभाग उदय और उदीरणा अनन्तगुणे हैं । $ ४३५. क्योंकि घातके विना सम्यक्त्वके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टिके तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिके द्वारा उदीर्यमाण जघन्य अनुभागको विषय करनेवाला होनेके कारण उसने प्रकृत जघन्य स्वामित्वका अवलम्बन लिया है। * क्रोधसंज्वलनके जघन्य अनुभागबन्ध, संक्रम और सत्कर्म स्तोक हैं ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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