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________________ गा०६२] मूलपयडिअणुभागउदीरणाए पोसणं भागो छ चोदस०, अजह० सव्वलोगो । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिए । णवरि अजह० लोग० असंखे भागो सव्वलोगो वा। $३५. पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज०-सव्वमणुस० जह० खेत्तं । अजह० लोग० असंखे० भागो सबलोगो वा । देवेसु मोह० जह० अणुभागुदी० लोग० असंखे०भागो अट्ठचोदस० । अजह• लोग० असंखे०भागो अट्ठ णव चोइस० । एवं सोहम्मीसाण । भवण-वाण-०-जोदिसि० मोह० जह० लोग० असंखे० भागो अद्धट्ट अट्ठ चोदस० । अजह० लोग० असंखे० भागो अट्ठ अट्ठ णव चोदस० । सणक्कुमारादि जाव सहस्सार ति मोह० जह० अजह० अणुभागुदी. लोग० असंखे०भागो अट्ट चोदस० । आणदादि अच्चुदा त्ति जह• अजह० लोग० असंखे०भागो छ चोदस० । उवरि खेत्तभंगो । एवं जाव । चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-यहाँ अपने-अपने स्वामित्वको देखते हुए सामान्य तिर्यञ्चों और पञ्चेद्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण बन जानेसे वह उक्तप्रमाण कहा है । शेष कथन सुगम है। ३५. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और सब मनुष्योंमें मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवोंमें मोहनीयके जघन्य अनुभागके 'उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और बसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पमें जानना चाहिए। भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन और कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्पतकके हनीयके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आनत कल्पसे लेकर अच्युत कल्पतकके देवोंमें मोहनीयके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आगे क्षेत्रके समान भंग है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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