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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ $ ३३. मणुसतिए मोह ० उक्क० अणुभागुदी० लोग० असंखे० भागो । अणुक्क० लोग • असंखे० भागो सव्वलोगो वा । देवेसु मोह० उक्क, अणुक्क० अणुभागुदी • लोग • असंखे ० भागो अट्ठ णव चोदस० दे० । एवं भवणादि जाव अच्चुदा ति । णवरि सगपोसणं । उवरि खेत्तभंगो । एवं जाव० । ० १६ $ ३४. जहणए पदं । दुविहो णि० - - ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० अणुभागुदी ० लोग • असंखे० भगो । अजह० केवडि० पोसिदं ? सव्वलोगो । आदेसेण णेरइय० मोह० जह० अणुभागुदी ० केव० पोसिदं ? लोग ० असंखे ० भागो । अजह० लोग • असंखे ० भागो छ चोदस० । एवं बिदियादि जाव सत्तमा ति । णवरि सगपोसणं । पठमाए खेत्तं । तिरिक्खेसु मोह० जह० अणुभागुदी • लोग० असंखे • विशेषार्थ – सामान्यसे नारकियोंका मारणन्तिक समुद्घातकी अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भाग प्रमाण स्पर्शन बन जानेके कारण इनमें मोहनीयके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका उक्त स्पर्शन कहा है। इसी प्रकार तिर्यञ्चत्रिक में मोहनीय उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंकी अपेक्षा स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । शेष कथन सुगम है । $ ३३. मनुष्यत्रिक मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार भवनवासियों से लेकर अच्युत कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए । आगे क्षेत्रके समान भंग है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । विशेषार्थ – यहाँ सर्वत्र अपने-अपने स्वामित्व और स्पर्शनको जानकर यह स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । अन्य कोई विशेषता न होनेसे अलग से स्पष्टीकरण नहीं किया है । $ ३४. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश | ओघ मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आदेशसे नारकियों में मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन जानना चाहिए। पहली पृथिवीमें क्षेत्रके समान भंग है । तिर्यञ्चों में मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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