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________________ ३३२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णयं द्विदिसंतकम्मं थोवं । $ ३८१ कुदो ? एगट्ठिदिपमाणत्तादो । * जट्ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । $ ३८२ कुदो ? दुसमयकालट्ठिदिपमाणतादो । * जहण्णओ ट्ठिदिसंकमो असंखेज्जगुणो । ९ ३८३. कुदो ? पलिदोवमासंखेज्जभागपमाणत्तादो । * जहणिया द्विदिउदीरणा असंखेज्जगुणा । ९ ३८४. कुदो १ देणसागरोवमपमाणत्तादो । [ वैदगो ७ * जहण्णओ ट्ठिदिउदओ विसेसाहिओ । ९ ३८५. केचियमेत्तो विसेसो ! एगट्ठिदिमेत्तो । किं कारणं ? उदयट्ठिदीए वि एत्थ पवेसदंसणादो | * सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसत्कर्म स्तोक है । $ ३८१. क्योंकि वह एक स्थितिप्रमाण है । * उससे यत्स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा है । $ ३८२. क्योंकि वह दो समय कालस्थितिप्रमाण है । विशेषार्थ — सम्यग्मिथ्यात्वकी क्षपणाके समय जब उसकी दो समय कालवाली एक निषेक स्थिति शेष रहती है तब इन दोनोंका यह अल्पबहुत्व बन जाता है । * उससे जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है । ३८३. क्योंकि वह प्रल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । * उससे जघन्य स्थिति उदीरणा असंख्यातगुणी है । $ ३८४. क्योंकि वह कुछ कम एक सागरोपमप्रमाण है । * उससे जघन्य स्थिति उदय विशेष अधिक है । ९ ३८५. शंका – विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान - एक स्थितिमात्र है, क्योंकि उदय स्थितिका भी इसमें प्रवेश देखा जाता है। विशेषार्थ — जघन्य स्थितिसंक्रम सम्यग्मिथ्यात्वकी क्षपणाके समय यथास्थान होता है जो पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इसे यत्स्थितिसत्कर्मसे असंख्यातगुणा बतलाया है । जघन्य स्थिति उदीरणा वेदक प्रायोग्य जघन्य स्थिति सत्कर्मवाले मिथ्यादृष्टि जीवके सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त करनेके बाद उसके अन्तिम समय में होती है । इसका प्रमाण कुछ कम एक सागरोपम है, इसलिए इसे जघन्य स्थितिसंक्रमसे असंख्यातगुणा बतलाया है । तथा इसमें उदयस्थितिके मिला देनेपर उससे जघन्य स्थिति उदय विशेष अधिक हो जानेसे उससे विशेष अधिक कहा है। इस प्रकार यहाँ तक स्थिति अल्पबहुत्वका जो स्पष्टीकरण किया उसी प्रकार आगे भी कर लेना चाहिए । जहाँ कहीं विशेष वक्तव्य होगा उसका अवश्य ही स्पष्टीकरण करेंगे ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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