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________________ गा० ६२] बंधादिपंचपदप्पाबहुअं ३२१ पयडिणिद्देसो पत्थि त्ति आसंकणिज्जं, द्विदि-अणुभाग-पदेसाणं तदविणाभावित्तेण तदुवलद्धीदो। तदो पयडि-द्विदि-अणुभाग-पदेसविसयबंध-संकम-संतकम्मोदयोदीरणाणं जहण्णुकस्सपदप्पाबहुअपरूवणट्ठमेदं गाहामुत्तमोइण्णं ति सिद्धं । णेदमेत्थासंकणिज्जं, वेदगपरूवणाए उदयोदीरणाओ मोत्तण बंध-संकम-संतकम्माणं परूवणा असंबद्धा त्ति ? किं कारणं ? उदयोदीरणविसयणिण्णयजणणद्वमेव तेसि पि परूवणे विरोहाभावादो । विहत्ति-संकम-वेदगाहियारेसु वुत्तसव्वत्थोवसंहारमुहेण चूलियापरूवणटुं गाहासुत्तमेदमोइण्णं ति भावत्थो । एवमेदिस्से गाहाए चउत्थीए अत्थं' परूविय संपहि एत्थेव णिण्णयजणणहँ चुण्णिसुत्ताणुगमं कस्सामो * एदिस्से गाहाए अत्थो-बंधो संतकम्मं उदयोदीरणा संकमो एदेसिं पंचण्हं पदाणं उक्कस्समुक्कस्सेण जहण्णं जहण्णण अप्पाबहुअं पयडीहिं हिदीहिं अणुभागेहिं पदेसेहिं । $३४७. एत्थ सुत्तत्थसंबंधे कीरमाणे पयडीहिं द्विदीहिं अणुभागेहिं पदेसेहिं य एदेसिं पंचण्हं पदाणमप्पाबहुअमेदिस्से चउत्थीए सुत्तगाहाए अत्थो ति पदसंबंधी कायव्यो । तत्थ काणि ताणि पंच पदाणि त्ति वुत्ते 'बंधो संतकम्ममुदयोदीरणा संकमो' निर्देश नहीं किया है ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि स्थिति, अनुभाग और प्रदेशके अविनाभावी होनेसे उसका ग्रहण हो जाता है। इसलिए प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशविषयक बन्ध, संक्रम, सत्कर्म, उदय और उदीरणाके जघन्य और उत्कृष्ट विशेषणयुक्त अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिए यह गाथा सूत्र आया है यह सिद्ध हुआ। ___ वेदकप्ररूपणामें उदय और उदीरणाके सिवाय बन्ध, संक्रम और सत्कर्मकी प्ररूपणा असम्बद्ध है ऐसी आशंका यहाँ नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उदय और उदीरणाविषयक निर्णयके करनेके लिए ही उनका भी यहाँ कथन करने में कोई विरोध नहीं आता। विभक्तिअधिकार, संक्रम अधिकार और वेदक अधिकारमें जो अर्थ कहा गया है उस सब अर्थके उपसंहार द्वारा चूलिकाका कथन करनेके लिए यह गाथा सूत्र आया है यह उक्त कथनका भावार्थ है। इस प्रकार इस चौथी गाथाके अर्थका कथन करके अब इसी विषयमें निर्णय करनेके लिए चूर्णिसूत्रका अनुगम करेंगे * इस गाथाका अर्थ-बन्ध, सत्कर्म, उदय, उदीरणा और संक्रम इन पाँचों पदोंका प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंका आवलम्बन लेकर उत्कृष्टका उत्कृष्टके साथ और जघन्यका जघन्यके साथ अल्पबहुत्व करना चाहिए। $ ३४७. यहाँ पर सूत्र और अर्थका सम्बन्ध करनेपर प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंकी अपेक्षा इन पाँच पदोंका अल्पबहुत्व करना चाहिए यह इस चौथी सूत्रगाथाका अर्थ है ऐसा यहाँ पदसम्बन्ध करना चाहिए। प्रकृतमें वे पाँच पद कौन हैं ऐसी पृच्छा १. आ०-ता०प्रत्योः च उत्थाणत्थं इति पाठः। ४१
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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