SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा०६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए भुजगारो भुज०-अप्पद० जह. एयस०, उक्क० अंतोमु० । अवढि० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो । अवत्त० जह० उक्क० एगस० । सव्वणिरय-सव्वतिरिक्खसव्यमणुस - सव्वदेवा ति अप्पप्पणो पयडीणं सव्वपदा० ओघं । एवं जाव० । ३१०. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० भुज-अप्प० जह• एगसमओ, उक्क० बेछावहिसागरो० देसूणाणि । अवढि० जह. एगस०, उक्क० असंखेजा लोगा । अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० उवड्डपोग्गलपरियढें । एवमणताणु०४ । गरि अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० बेछावहिसागरोवमाणि देसूगाणि । सम्म०-सम्मामि० भुज०-अप्पद०-अवट्ठि०-अवत्त० जह० एगस० अंतोमु०, उक० उबड्डपोग्गलपरियढें । अट्ठक. भुज०-अप्प०-अवत्त० जह, एगस० अंतोमु०, काल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। सब नारकी, सब तिर्यश्च, सब मनुष्य और सब देवोंमें अपनी-अपनी सब प्रकृतियोंके सब पदोंका भंग ओघके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। • विशेषार्थ-यहाँ.पर सब वृद्धियों और सबहानियोंके जघन्य काल एक समय और अनन्तगणवृद्धि तथा अनन्तगणहानिके उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तको ध्यानमें रखकर सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । उक्त सब प्रकृतियोंकी अवस्थित उदीरणा कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक आवलिके असंख्यातव भागप्रमाण काल तक होती है यह जानकर प्रकृतमें इस पदके उदीरकका जघन्य काल एक समय कहा है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। इनके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है यह स्पष्ट ही है। गति मार्गणाके अवान्तर भेद-प्रभेदोंमें जहाँ जिन प्रकृतियोंकी उदीरणा होती है और जो पद हैं उनको ध्यानमें रखकर ओघके समान काल बन जानेसे उसे ओघके समान जाननेकी सूचना को है। $३१०. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम दो छयासठ सागरोपमप्रमाण है। अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी-चतुष्कको अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम दो छयासठ सागरोपमप्रमाण है । सम्यकत्व और सम्यग्मिथ्यात्वके भजगार. अल्पतर और अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है, अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका.जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है तथा सबका उत्कृष्ट अन्तरकाल उपाधपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। आठ कषायोंके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है, अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy