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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए अप्पाबहुअं २९७ णस० उक्कस्सिया पदेसुदीरणा अणंतगुणा । सेसं तं चेव । सेसगदीसु वि विसेससंभवं जाणियूण णेदव्वं । एवं जाव० । * एत्तो जहणिया। $२८८. एत्तो उवरि जहणिया पदेसुदीरणा अप्पाबहुअविसेसिदा कायव्वा त्ति पयदसंभालणवक्कमेदं । तस्स दुविहो णिद्देसो · ओघादेस देण । तत्थोघपरूवणा माह- . ___ * सव्वत्थोवा मिच्छत्तस्स जहणिया पदेस दीरणा। ___$ २८९. कुदो ? सबुक्कस्ससंकिलिट्ठमिच्छाइटिणा उदीरिजमाणासंग्वेजलोगपडि. भागियदव्यस्स गहणादो। __ * अपञ्चक्खाणकसायाणं जहणिया पदेसुदीरणा अण्णदरा तुल्ला संखेजगुणा। $२९०. कुदो ? सामित्तविषयमेदाभावे वि एगासंखेजलोगपडिभागियदव्वादो चदुण्हमसंखेजलोगपडिभागियदव्याणं समुदायस्स थोवूणचउग्गुणत्तुवलंभादो। * पचक्खाणकसायाणं जहणिया पद सुदीरणा अण्णदरा तुल्ला विसेसाहिया। की उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे प्रत्याख्यानचतुष्कमेंसे अन्यतर प्रकृतिकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा विशेष अधिक है। उससे नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा अनन्तगुणी है। शेष अल्पबहुत्व वही है। शेष गतियोंमें भी जहाँ जो विशेष सम्भव हो उसे जान कर कथन करना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। * इससे आगे जघन्य अल्पबहुत्वका अधिकार है । $ २८८' इससे आगे अल्पबहुत्व विशेषण युक्त जघन्य प्रदेश उदीरणा करनी चाहिए इस प्रकार प्रकृतकी सम्हाल करनेवाला यह वाक्य है। ओघ और आदेशके भेदसे उसका निर्देश दो प्रकारका है। उनमेंसे ओघका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं * मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेश उदीरणा सबसे स्तोक है। $ २८९. क्योंकि सबसे उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले मिथ्यादृष्टिके द्वारा असंख्यात लोकका भाग देने पर एक भाग प्रमाण उदीर्यमाण द्रव्यका यहाँ ग्रहण किया है। ____ * उससे अप्रत्याख्यान कषायोंमेंसे अन्यतर प्रकृतिकी जघन्य प्रदेश उदीरणा संख्यातगुणी है। ६२९० क्योंकि स्वामित्वविषयक भेदका अभाव होनेपर भी असंख्यात लोकका भाग देने पर लब्ध एक भाग प्रमाण द्रव्यसे असंख्यात लोकका भाग देनेपर लब्ध द्रव्योंका समुदाय कुछ कम चौगुना उपलब्ध होता है। * उससे प्रत्याख्यान कषायोंमेंसे अन्यतर प्रकृतिकी जघन्य प्रदेश उदीरणा परस्पर तुल्य होकर विशेष अधिक है।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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