SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ * हस्स-सोगाणमुक्कस्सिया पदेसुदीरणा विसेसाहिया । $ २८४. सुगममेदं, ओघम्मि परूविदकारणत्तादो। * रदि-अरदीणमुक्कस्सिया पदेसुदीरणा विसेसाहिया । $ २८५. एदं पि सुगम, पयडिविसेसवसेण विसेसाहियत्तसिद्धीए ओघम्मि समत्थियत्तादो। . * संजलणाणमुक्कस्सिया पदेस दीरणा संखेजगुणा । $ २८६. कुदो ? सादिरेयदोरूवमेत्तगुणगारदसणादो । तं जहा–रदि-अरदिदव्वमोघम्मि परूविदविहाणेण णोकसायभागं पंच खंडाणि कादूण तत्थ वेखंडपमाणं होदि, भयभागस्स वि तत्थ पवेसियत्तादो। संजलणदव्वं पुण णोकसायभागपमाणेण कीरमाणं पंचण्हं भागाणमुप्पत्तीए कारणं होदि, संपुण्णकसायभागपमाणत्तादो। तदो पुचिल्लबेखंडेहिंतो पंचण्हं खंडाण मेदेसि पयडिविसेसगन्माणं सादिरेयगुणत्तमिदि णिप्पडिवक्खसिद्धमेदं । एवं णिरयोघो समत्तो। $२८७. एवं पढमाए । बिदियादि जाव सत्तमि त्ति एवं चेव । गवरि सम्मा मिच्छत्तादो उवरि सम्मत्तस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा असंखेज्जगुणा । अपच्चक्खाण उक्कस्सिया पदेसुदीरणा असंखेजगुणा । पञ्चक्खाण० उक्कस्सिया पदेसुदीरणा विसेसाहिया । * उससे हास्य और शोककी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा विशेष अधिक है। $ २८४. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि ओघ प्ररूपणाके समय इसके कारणका कथन कर आये हैं। * उससे रति और अरतिकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा विशेष अधिक है। ६२८५. यह सूत्र भी सुगम है, क्योंकि प्रकृति विशेषके कारण विशेषाधिकपनेको सिद्धिका समर्थन ओघप्ररूपणाके समय कर आये हैं । ___* उससे संज्वलनोंकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा संख्यातगुणी है। $ २८६. क्योंकि साधिक दो संख्याप्रमाण गुणकार देखा जाता है। यथा-ओघमें कही गई विधिसे नोकषायके हिस्सेके पाँच भाग खण्ड करके वहाँ दो खण्डप्रमाण रति-अरतिका द्रव्य है, क्योंकि भयभागका भी उसमें प्रवेश करा दिया है। परन्तु संज्वलन द्रव्य नोकषायभागप्रमाणसे करने पर पाँच भागोंकी उत्पत्तिका कारण है, क्योंकि वह सम्पूर्ण कषाय भागप्रमाण है। इसलिए पहलेके दो खण्डोंसे प्रकृतिविशेषगर्भ इन पाँच खण्डोंका यह साधिक दुगुणपना चिना बाधाके सिद्ध है । इस प्रकार नरकगतिसम्बन्धी ओघप्ररूपणा समाप्त हुई। ___$ २८७. इसी प्रकार प्रथम पृथिवीमें जानना चाहिए। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवीतक इसी प्रकार प्ररूपणा है । इतनी विशेषता है कि सम्यमिथ्यात्वसे ऊपर सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे अप्रत्याख्यानचतुष्कमें से अन्यतर प्रकृतिकी
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy