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________________ गा० ६२ ] मूलपयडिअणुभाग उदीरणाए अंतरं २३. आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क० अंतरं केव० १ जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० बे समया । एवं सव्वणेरइय० । णवरि सगहिदी देसूणा । तिरिक्खेसु मोह० उक्क० अणुभागुदी० जह० एगस० उक्क० अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० बे समया। पंचिंदियतिरिक्खतिये मोह० उक्क० अणुभागुदी० जह० एगस, उक्क० पुवकोडिपुधत्तं । अणुक्क० जह० एयस० । उक्क० बे समया । एवं मणुसतिए । णवरि अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज०-मणुसअपज्ज. मोह० उक्क० अणुभागुदी० जह० एयस०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । अणुक्क०, जह० एगस०, उक्क० बे समया । देवेसु मोह० उक्क० अणुभागुदी० जह० एगस०, उक्क० अट्ठारससागरो० सादिरेयाणि । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० बे समया । एवं भवणादि जाव सव्वट्ठा त्ति । णवरि सगट्ठिदी देसूणा । एवं जाव० । अनुभाग उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय प्राप्त होता है तथा अनुत्कष्ट अनुभाग उदीरणा करनेवाला जो जीव उपशमणिपर आरोहण कर और वहाँसे उतरकर पुनः अनुत्कष्ट अनुभाग उदीरणा करने लगता है उसके अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है। २३. आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागर है । अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है। इसी प्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। तिर्यञ्चोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनके बराबर है। अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभाग उदोरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है। अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है। देवों में मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक अठारह सागर है। अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है। इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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