SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए परिमाणं २७१ २०६. आदेसेण णेरइय० सम्म उक्क० पदेसुदी० जह० एयस०, उक्क० वासपुधत्तं । अणुक० णत्थि अंतरं० । सम्मामि० ओघं । मिच्छ० - अनंताणु०४ उक्क० 1 पदेसुदी ० जह० एस ०, उक्क० सत्त रादिंदियाणि । अणुक० णत्थि अंतरं० । बारसक० - सत्तणोक० उक० पदेसुदी० जह० एयस०, उक्क० असंखेजा लोगा । अणुक० णत्थि अंतरं० । एवं पढमाए । एवं विदियादि जाव सत्तमा ति । णवरि सम्म० बारसकसायभंगो । उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है, इसलिए उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव सर्वदा पाये जाते हैं, इसलिए इनके अन्तरकालका निषेध किया है । सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा यह अन्तरकाल बन जाता है । मात्र इस अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव कमसे कम एक समय तक और अधिक से अधिक पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक नहीं पाये जाते, इसलिए इसके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। क्षपकश्रेणिके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकालको ध्यानमें रखकर सम्यक्त्व और संज्वलन लोभके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना कहा है । इनके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है यह स्पष्ट ही है, क्योंकि जब समयऔर संज्वलन लोभकी उदीरणा न हो ऐसा एक भी समय नहीं उपलब्ध होता । पुरुषवेद और शेष तीन संज्वलनोंकी अपेक्षा क्षपकश्रेणिके अन्तरकालको ध्यान में रखकर इनके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व प्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव निरन्तर पाये जाते हैं, इसलिए इसलिए इसका निषेध किया है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी अपेक्षा क्षपकश्रेणिके अन्तरकालको ध्यान में रख कर इनके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व प्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीव निरन्तर पाये जाते हैं इसलिए इसका निषेध किया है । मनुष्यत्रिकमें यह अन्तरकाल अविकल बन जाता है, उनमें ओके समान जानेकी सूचना की है। मात्र इन तीन प्रकारके मनुष्योंमें जिसके जो वेद सम्भव हों उन्हें जानकर उनके उन्हींकी अपेक्षा कथन करना चाहिए। इतना विशेष जानना चाहिए कि जिन प्रकृतियोंकी क्षपकश्रेणिमें उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा होती है उनकी अपेक्षा मनुष्यिनियोंमें उत्कृष्ट प्रदेश उदीर कोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण कहना चाहिए । $ २०६. आदेशसे नारकियों में सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व प्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर हैं । सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघ के समान है । मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात रात्रि-दिन है अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर हैं । बारह कषाय और सात नोकषायों के उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर हैं । इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए। इसी प्रकार दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इन द्वितीयादि पृथिवियोंमें सम्यक्त्वका भंग बारह कषायोंके समान है ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy