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________________ २४६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ अंतरं । अणुक्क० जह० उक्क. अंतोमु । तिण्हं वेदाणं उक० पदे. गथि अंतरं । अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० पुव्वकोडिपुधनं । णवरि वेदा जाणियव्वा । मणुसिणीसु इत्थिवे. उक्क० णत्थि अंतरं । अणुक्क० जह० उक्क० अंतोमु०।। १६४. देवेसु मिच्छ०-अणंताणु०४ उक० अणुक्क० पदे० जह० पलिदो० असंखे०भागो अंतोमु०, उक० एकत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि । सम्मामि० उक्क० अणुक्क० पदेसुदी० जह० अंतोमु०, उक्क० एकत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि । एवं सम्म० । णवरि उक्क० णत्थि अंतरं । बारसक०-सत्तणोक० उक्क० पदे० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । अणक्क० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । णवरि अरदि-सोग० अणुक० जह० एयस०, उक्क० छम्मासं । पुरिसवेद०. अणुक० जह० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे० भागो । इत्थिवेद० उक्क० पदेसुदी. जह० एयस०, उक्क० पणबण्णं पलिदो० देसूणाणि । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । एवं भवणादि जाव गवगेवजा त्ति । णवरि सगहिदी देसूणा । है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। तीन वेदोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि वेद जान लेने चाहिए। मनुष्यिनियोंमें स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है। विशेषाथे—मनुष्य पर्याप्तकोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेदके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकके उत्कृष्ट अन्तरकालको पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान घटित कर लेना चाहिए । मनुष्यिनियोंमें उपशमश्रेणिकी अपेक्षा स्त्रीवेदके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त प्राप्त होनेसे वह तत्प्रमाण कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है। १६४. देवोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण और अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागरोपम है। सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागरोपम है । इसी प्रकार सम्यक्त्वकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । बारह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहर्त है। इतनी विशेषता है कि अरति और शोकके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है। पुरुषवेदके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पचवन पल्योपमप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल आवलिके असंख्यातवं भागप्रमाण है। इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर नौ प्रैवेयक तकके देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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