SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३७ गा० ६२ ] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण कालो पदेसुदी० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे भागो। अजह० जह० एगस०, उक्स० तिण्णि पलिदोवमाणि पुन्यकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिये। णवरि णqस० अजह० जह० एगस०, उक्क० पुवकोडिपुध० । मिच्छ ० अजह० जह० एगस०, उक्क० सगढिदी। वरि पज० इथिवेदो पत्थि । जोणिणीसु पुरिसवेदणवूस० णत्थि । सम्म० अजह• जह० अंतोमु० । $ १५०. पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुससअपज. सव्वपय० जह० पदेसुदी० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। अजह जह० एगस०, उक्क० अंतोमु०। १५१. मणुसतिये पंचिंदियतिरिक्खभंगो। णवरि सम्म० अजह० जह० अंतोमु० । पजत्तएसु इत्थिवेदो णत्थि । सम्म० अजह० जह० एगस० । मणुसिणीसु पुरिसवेद-णवुस० णत्थि । जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूवकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है। इसी प्रकार पश्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। मिथ्यात्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है और योनिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है। तथा योनिनियोंमें सम्यक्त्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है। विशेषार्थ—कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि जीव मर कर तिर्यश्च योनिनियोंमें नहीं उत्पन्न होते, इसलिए इनमें सम्यक्त्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय न होकर अन्तमुहूर्त कहा है। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें भी सम्यक्त्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तमुहूर्त इसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए । आगे मनुष्यिनियोंमें, भवनत्रिक देवोंमें तथा सौधर्म-ऐशान कल्पकी देवियोंमें भी सम्यक्त्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तमुहूर्त इसी प्रकार जानना चाहिए । अन्य सब कथन सुगम होनेसे उसका स्पष्टीकरण नहीं किया है। १५०. पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। ६१५१. मनुष्यत्रिकमें पजेन्द्रिय तिर्योंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है। तथा इनमें सम्यक्त्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है। मनुष्यिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है। विशेषार्थ—यहाँ पर सामान्य मनुष्योंमें सम्यक्त्वके अजघन्य प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा है सो उसका कारण यह है कि क्षायिक सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy