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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ वा । एवं मणुसतिए । आदेसेण णेर० मोह० जह० विट्ठाणि । अजह० बिट्ठाणि. तिट्ठा० चउट्ठा० । एवं सव्वणेरइय-सव्वतिरिक्ख-मणुस-अपज्ज०-देवा भवणादि जाव सहस्सारा त्ति । आणदादि सव्वट्ठा त्ति जह० अजह० अणुभागुदी० बिट्ठाणिया । एवं जाव०।
१५. सव्वुदीरणा-णोसव्वुदीरणा उक्क० उदी० अमुक्क० उदी० जह० उदी० अजह० उदी० अणुभागविहत्तिभंगो।
१६. सादि०-अणादि०-धुव०-अद्धवाणु० दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण उक्क० अणुक्क० जह० अणुभागुदी० किं सादि० ४ १ सादि० अद्भुवा । अजह० अणुभागु० किं सादि ४ १ सादिया वा अणादिया वा धुवा वा अद्भुवा वा । आदेसेण सव्वगदीसु उक्क. अणुक्क० जह० अजह• अणुभागुदी० किं सादि० ४ १ सादि० अद्धवा० । एवं जाव०।। एकस्थानीय है, द्विस्थानीय है, त्रिस्थानीय है और चतुःस्थानीय है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीय कर्मको जघन्य अनुभाग उदीरणा द्विस्थानीय है । अजघन्य अनुभाग उदीरणा द्विस्थानीय है, त्रिस्थानीय है और चतुःस्थानीय है। इसी प्रकार सब नारको, सब तिर्यश्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें जानना चाहिए। आनत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें जघन्य और अजघन्य अनुभाग उदीरणा द्विस्थानीय है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
$ १५. सर्वउदीरणा और नोसर्व अनुभाग उदीरणाकी अपेक्षा उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा, अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा और अजघन्य अनुभाग उदीरणाका भंग अनुभाग विभक्ति के समान है।
$ १६. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रु व अनुभाग उदीरणाकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग उदीरणा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रव है ? सादि और अध्रुव है। अजघन्य अनुभाग उदीरणा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रुव है ? सादि है, अनादि है, ध्रुव है और अध्रुव है । आदेशसे सब गतियोंमें उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य अनुभाग उदीरणा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रुव है ?. सादि औरअ ध्रुव है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
. विशेषार्थ--उत्कृष्ट अनुभाग सत्कर्मवाला जो जीव उत्कृष्ट संक्लेश परिणामसे मोहनीय की अनुभाग उदोरणा कर रहा है उसके उस समय मोहनीयको उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा होती है । यतः यह कादाचित्क है, इसलिए इसे तथा इस पूर्वक होनेवाली अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणाको ओघसे सादि और अध्र व कहा है। क्षपकौणिमें सकषाय जीवके एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहने पर मोहनीयकी जघन्य अनुभाग उदीरणा होतो है, इसलिए ओघसे इसे भी सादि और अध्रुव कहा है। किन्तु इसके पूर्व एक तो अनादि कालसे अजघन्य अनुभाग उदोरणा पाई जाती है। दूसरे उपशमश्रेणिसे गिरनेवाले जीवके वह सादि