SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० ६२] मूलपयडिअणुभाग उदीरणा सव्वघादी । अणुक्क० सव्वघादी वा देसघादी वा । एवं मणुसतिए । सेसगदीसु उक्क० अणुक्क० सव्वघादी । एवं जाव० । १२. जहण्णए पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० अणुभागुदी० देसघादी० । अजह० देसघादी वा सव्वधादी वा । एवं मणुसतिए । सेसगदीसु जह० अजह० अणुभागुदी० सव्वघादी । एवं जाव० ।। १३. ठाणसण्णा दुविहा-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० अणुभागुदी० चउट्ठाणिया । अणुक्क ० चउट्ठाणिया वा तिहाणिया० दुट्ठाणिया० एयवाणिया वा । एवं मणुसतिए । आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क० अणुभागुदी० चउट्ठाणिया । अणुक० अणुभागु० चउट्ठा० तिहाणिया० विट्ठाणिया वा । एवं सव्वणेरइय-सव्वतिरिक्ख-मणुसअपज०-देवा भवणादि जाव सहस्सारा त्ति । आणदादि सव्वट्ठा ति मोह० उक्क० अणुक्क ० अणुभागुदी० विट्ठाणिया । एवं जाव। $ १४. जहण्णए पयदं। दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० अणुभागुदी० एगट्ठाणिया। अजह० एगट्ठा० बिट्ठा. तिट्ठा० चउट्ठाणिया आदेश । ओघसे मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा सर्वघाति है। अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा सर्वघाति है और देशघाति है। इसीप्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। शेष गतियोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा सर्वघाति है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ६ १२. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभाग उदीरणा देशघाति है । अजघन्य अनुभाग उदीरणा देशघाति है और सर्वघाति है । इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। शेष गतियोंमें जघन्य और अजघन्य अनुभाग उदीरणा सर्वघाति है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ६ १३. स्थानसंज्ञा दो प्रकारकी है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतुःस्थानीय है। अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतुःस्थानीय है, त्रिस्थानीय है, द्विस्थानीय है और एकस्थानीय है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतुःस्थानीय है । अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतुःस्थानीय है, त्रिस्थानीय है और द्विस्थानीय है । इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें जानना चाहिए। आनत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरण द्विस्थानीय है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ...$ १४. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीय कर्मकी जघन्य अनुभाग उदीरणा एकस्थानीय है। अजघन्य अनुभाग उदीरणा
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy