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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
$ १०४. सुगमं ।
* मिच्छत्ताहिमुहचरिमसमयसम्माइट्ठिस्स
[ वेदगो ७
सव्वसंकिलिट्ठस्स
ईसिमज्झिमपरिणामस्स वा ।
$ १०५. एत्थ मिच्छत्ताहिमुहणिद्देसो सत्थाणसम्माइट्ठिपडि सेहफलो । चरिमसमयसम्माइट्टिणिसो दुरिमादिहेट्ठिमसमयसम्माइट्ठिपडिसेहट्ठो, तत्थ सव्वुक्कस्ससंकिलेसाभावादो । सव्वसंकि लिट्ठस्से ति णिसो सव्वुक्कस्ससंकिलेसाणुविद्ध पडिवादट्ठा जगहusो, उक्कस्ससंकिलेससंबंधेण विणा पदेसुदीरणाए जहण्णभावाणुववत्तीदो । वरि तप्पा ओग्गाणुक्कस्स पडिवादट्ठाणेहि मि जहण्णसामित्तमविरुद्धं ति जाणावणट्टमीसिमज्झिमपरिणामस्स वा ति णिद्देसो कओ । सेसं सुगमं ।
* सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णिया पदेस दीरणा कस्स ?
१०६. सुगमं ।
* मिच्छत्ताहिमुहचरिमसमयसम्मामिच्छाइट्ठिस्स सव्वसंकिलिट्ठस्स ईसिमज्झिमपरिणामस्स वा ।
$ १०७. एयं पित्तं सुगमं, अणंतरसामित्तसुत्त्रेण समाणवक्खाणत्तादो | * सोलसकसाय-णवणोकसायाणं जहण्णिया पदेस दीरणा मिच्छत्त
भंगो ।
$ १०४. यह सूत्र सुगम है ।
* सर्व संक्लेश परिणामवाले अथवा ईषत् मध्यम परिणामवाले मिथ्यात्वके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती सम्यग्दृष्टिके होती है ।
$ १०५. स्वस्थान सम्यग्दृष्टिका प्रतिषेध करनेके लिए यहाँ सूत्रमें 'मिथ्यात्वके अभिमुख हुए पदका निर्देश किया है । द्विचरम आदि अधस्तन समयवर्ती सम्यग्दृष्टिका निषेध करनेके लिए 'अन्तिम समयवर्ती सम्यग्दृष्टि' पदका निर्देश किया है, क्योंकि सम्यग्दृष्टिके द्विचरम आदि समय में सबसे उत्कृष्ट संक्लेशका अभाव है । सबसे उत्कृष्ट संक्लेशसे अनुविद्ध प्रतिपातस्थानके ग्रहण करनेके लिए 'सबसे उत्कृष्ट संक्लेशवालेके' पदका निर्देश किया है, क्योंकि उत्कृष्ट संक्लेशके सम्बन्धके बिना प्रदेश उदीरणाका जघन्यपना नहीं बन सकता । किन्तु इतनी विशेषता है कि तत्प्रायोग्य अनुत्कृष्ट प्रतिपात स्थानोंके द्वारा भी जघन्य स्वामित्व अविरुद्ध है इसका ज्ञान करानेके लिए 'ईषत् मध्यम परिणामवालेके' यह निर्देश किया है । शेष कथन सुगम है ।
* सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेश उदीरणा किसके होती है ? $ १०६. यह सूत्र सुगम है ।
* सर्व संक्लेश परिणामवाले अथवा ईषत् मध्यम परिणामवाले मिथ्यात्वके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टिके होती है ।
·$ १०७, यह भी सूत्र सुगम है, क्योंकि अनन्तर पूर्व सूत्रके समान इसका व्याख्यान है । * सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य प्रदेश उदीरणाके स्वामित्वका भंग मिथ्यात्वके समान है ।