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________________ मूलपयडिअणुभाग उदीरणा * तत्थ जं जिस्से आदिफद्दयं तं ण ओकड्डिज्जदि । $ ४. कुदो ? तत्तो ट्ठा अणुभागफद्दयाणमसंभवादो । * एवमताणि फद्दयाणि ण ओकडिज्जति । ९५. कुदो ? णिरुद्धफद्दयादो हेट्ठा जहण्णा इच्छावणा-णिक्खेवमेत्तफहएहिं विणा ओकडणाए संभवाणुवलंभादो । * केत्तियाणि ? जत्तिगो जहण्णगो णिक्खेवो जहरिणा च अइच्छावणा तत्तिगाणि । गा० ६२ ] $ ६. अनंताणि फहयाणि ण ओकडिज्जति त्ति पुव्वसुत्ते परूविदं । तांणि केत्तियाणि त्ति पुच्छिदे जहण्णाइच्छावणा-णिक्खेवमेत्ताणि त्ति तेसिं पमाणणिदेसो कदो । एवमेदेण सुत्तेण जहण्णाइच्छावणा-णिक्खेवमेत्ताणं फहयाणमोकडणा णत्थि ति पदुपाहय संपहि एत्तो उवरिमफद एस ओकडणाए पडिसेहो णत्थि त्ति पदुप्पायणमुत्तरं सुत्तमाह * आदीदो पहुडि एत्तियमेत्ताणि फद्दयाणि अइच्छिण तं फद्दयमोडज्जदि । * वहाँ जो जिस कर्म प्रकृतिका आदि स्पर्धक है उसका अपकर्षण नहीं होता । $ ४. क्योंकि उससे नीचे अनुभाग स्पर्धकोंका होना असम्भव है । * इसी प्रकार अनन्त स्पर्धक नहीं अपकर्षित होते । $ ५. क्योंकि विवक्षित स्पर्धकसे नीचे जघन्य अतिस्थापना और जघन्य निक्षेपमात्र स्पर्धकोंके बिना अपकर्षण होना सम्भव नहीं है । * वे (अपकर्षणके अयोग्य स्पर्धक ) कितने हैं ? जितना जघन्य निक्षेप है और जघन्य अति स्थापना है उतने हैं । ६. अनन्त स्पर्धक नहीं अपकर्षित होते हैं यह पूर्व सूत्रमें कहा है । वे कितने हैं ऐसा पूछने पर वे जघन्य अतिस्थापना और जघन्य निक्षेप प्रमाण हैं, इस प्रकार इस सूत्र द्वारा उनका प्रमाणनिर्देश किया है। इस प्रकार इस सूत्रद्वारा जघन्य अतिस्थापना और जघन्य निक्षेपप्रमाण स्पर्धकोंका अपकर्षण नहीं होता ऐसा कथन करके अब इनसे ऊपर के स्पर्धकोंमें अपकर्षणका प्रतिषेध नहीं है इसका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं * आदि स्पर्धकसे लेकर इतने स्पर्धकोंको उल्लंघन कर जो स्पर्धक है उसका अपकर्षण होता है ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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