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________________ गा० ६२ ] मूलपयडिपदेसउदीरणाए भागाभागानुगमो सिया अणुदीरगा च उदीरगो च, सिया अणदीरगा च उदीरगा च । अणुक्कस्सपदेसस्स सिया सव्वे उदीरगा, सिया उदीरगा च अणुदीरगो च, सिया उदीरगा च अणुदीरगा च । एवं सव्वणिरय सव्वतिरिक्ख- मणुसतिय देवा भवणादि जाव सव्वा ति । मणुसअपज० उक्क० अणुक्क० पदेस० अट्ठ भंगा । एवं जाव० । २७. जह० पदं । दुविहो णिद्देसो । तं चैव अट्ठपदं । ओघेण मोह० जह० पदेस० सिया सव्वे अणुदीरगा, सिया अणुदीरगा च उदीरगो च, सिया अणुदीरगा च उदीरगा च । अजह० पदे० सिया सव्वे उदीरगा, सिया उदीगा च अणुदीरगो च, सिया उदीरगा च अणुदीरगा च । एवं सव्व णेरइय - सव्वतिरिक्ख - मणुसतिय- देवा भवणादि जाव सट्टा ति । मणुसअपज० मोह० जह० अजह० पदे० अड्ड भंगा । एवं जाव० । १९१ 11 २८. भागाभागाणु० दुविहो – जह० उक्क० । उकस्से पयदं । दुविहो णि ०. ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० पदे० सव्वजी० के० ? अनंतभागो । अणुक्क० के० ? अनंता भागा । एवं तिरिक्खोघं । आदेसेण णेरइय० मोह ० उक्क० पदे ० कदाचित् सत्र जीव अनुदीरक हैं । कदाचित् नाना जीव अनुदीरक हैं और एक जीव उदीरक है । कदाचित् नाजा जीव अनुदीरक हैं और नाना जीव उदीरक हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके कदाचित् सब जीव उदीरक हैं । कदाचित् नाना जीव उदीरक हैं और एक जीव अनुदीरक है । कदाचित् नाना जीव उदीरक हैं और नाना जीव अनुदीरक हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्यत्रिक, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें जानना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकों में उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंके आठ भंग हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । § २७. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है। वही अर्थ पद है । ओघसे मोहनी के जघन्य प्रदेशोंके कदाचित् सब जीव अनुदीरक हैं। कदाचित् नाना जीव अनुदीरक हैं और एक जीव उदीरक है। कदाचित् नाना जीव अनुदीरक हैं और नाना जीव उदीरक हैं । अजघन्य प्रदेशोंके कदाचित् सब जीव उदीरक हैं। कदाचित् नाना जीव उदीरक हैं और एक जीव अनुदीरक है । कदाचित् नाना जीव उदीरक हैं और नाना जीव अनुदीरक हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्यत्रिक, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें जानना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकों में मोहनीयके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंके आठ भंग हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । $ २८. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघसे मोहनी के उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्त बहुभाग प्रमाण हैं । इसी १. आ०प्रतौ ते उक्कस्सपदेसस्स २. आ०प्रतौ सिया सव्वे उदीरगा सिया इति पाठः । सिया इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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