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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ १४२५. सामिषं दुविहं – जह० उक० । उकस्से पयदं । दुविहो जिसी - ओषेण आदेसेण य । ओषेण मिच्छ०- सोलसक० उक० वड्डी कस्स १ अण्णद० मिच्छाइट्ठिस्स जो उक्कस्ससंतकम्मिगो उक्कस्ससंकिलेसं गदो तस्स उक० वड्डी । उक० हाणी कस्स १ अण्णद० जो उकस्साणुभागमुदीरेंतो मदो बादइंदिओ जादी तस्स उक हाणी । उक० अवडा, कस्स १ अण्णद० जो उकस्साणुभागमुदीरें तो तप्पा ओग्गविसोहीए पदिदी तस्स से काले उक्क • अवट्ठाणं । १५६ १४२६. सम्म० - सम्मामि० उक० वढी कस्स १ अण्णद० तप्पा ओग्गसंकिलिइस्स मिच्छत्ताहिमुहस्स चरिमसमये वट्टमाणस्स तस्स उक० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स ? अण्णद० जो तप्पा ओग्गउकस्साणुभागमुदीरेंतो तप्पाजोग्गविसोहीए पदिदो तस्स क ० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवड्डाणं । $ ४२७. इत्थवेद - पुरिसवेद० उक० वड्डी कस्स ? अण्णद जो अट्ठवस्सिंगो करहो तपाओग्गजहृणमुदीरेंतो उकस्ससंकिलेस गड़ी तस्स उक० बड्डी । उक हाणी० ० कस्स ? अण्णद० सो चेव उकस्साणुभागमुदीरेंतो तप्पा ओग्गविसोहीए पदिदो तस्स उक० हाणी । तस्सेव से काले उक० अवड्डा० । एवं णवुंस० - अरदि- सोग-भय $ ४२५. स्वामित्व दो प्रकारका है- जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट बुद्धि किसके होती है ? जो उत्कृष्ट सत्कर्मवाला जीव उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ ऐसे अन्यतर मिथ्यादृष्टि उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला अन्यतर जीव मरा और बादर एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हो गया उसके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है । उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है? जो उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला अन्यतर जीव तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त हुआ उसके उनका तदनन्तर समयमैं उत्कृष्ट अवस्थान होता है । $ ४२६. सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? तमायोग्य संक्लेश परिणामबाला मिध्यात्वके अभिमुख हुआ अन्तिम समयमें विद्यमान जो अम्यतर जीव है उसके उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? तत्प्रायोग्य उत्कड 'अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जो अन्यतर जीव तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त हुआ उसके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है। तथा उसीके तदनन्तर समयमें उनका उत्कृष्ट अवस्थान होता है। $ ४२७. स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? तत्प्रायोग्य जपन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जो अन्यतर आठ वर्षका करभ उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ उसके उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जो अन्यतर वही करभ तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त हुआ उसके उनकी उत्कृष्ट छानि होती है। तथा उसीके तदनन्तर समयमें उनका उत्कृष्ट अवस्थान होता है। इसी प्रकार नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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