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________________ १२८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ ___ * माणसंजलणस्स जहएणाणुभागुदीरणा अणंतगुणा । ३४६. कुदो ? पुबिल्लसामित्तविसयादो अंतोमुहुत्तमोसरिदूण द्विदचरिमसमयमाणवेदगम्मि पुब्बिल्लकिट्टिअणुभागादो अणंतगुणमाणतदियसंगहकिट्टिअणुभागं घेत्तण जहण्णसामित्तविहाणादो। * कोहसंजलणस्स जहएगाणुभागुदीरणा अणंतगुणा । ३४७. एत्थ वि कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । * सम्मत्ते जहएगाणुभागुदीरणा अणंतगुणा । ३४८. किं कारणं ? किट्टिअणुभागादो अणंतगुणफद्दयगदाणुभागमेयट्ठाणियं घेत्तग समयाहियावलियचरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयम्मि जहण्णसामित्तपडिलंमादो। * पुरिसवेदे जहण्णाणुभागुदीरणा अणंतगुणा। ३४९. तं जहा-चरिमसमयसवेदएण बद्धपुरिसवेदणवकबंधाणुभागो समयाहियावलियअक्खीणदंसणमोहणीयस्स सम्मत्तजहण्णाणुभागसंकमादो अणंतगुणो होदि ति संकमे भणिदं । एदम्हादो पुण चरिमसमयणवकबंधादो तत्थेव पुरिसवेदस्स जहण्णाणुभागोदयो अणंतगुणो। पुणो एदम्हादो वि उदयादो समयाहियावलियचरिमसमयसवेदस्स पुरिसवेदजहण्णाणुभागुदीरणा अणंतगुणा। कुदो एदं णव्वदे ? खवगसेढीए * उससे मानसंज्वलनकी जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है। ३४६. क्योंकि पिछले स्वामित्वके विषयसे अन्तर्मुहूर्त पीछे जाकर जो मानका वेदन करनेवाला जीव मानवेदनकालके अन्तिम समयमें स्थित है उसके पूर्व के कृष्टिगत अनुभागसे अनन्तगुणे मानसंज्वलनके तृतीय संग्रहकृष्टिगत अनुभागको ग्रहण कर जघन्य स्वामित्वका विधान किया गया है। * उससे क्रोधसंज्वलनकी जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगणी है। $ ३४७. यहाँ पर भी कारणका कथन पूर्वके समान करना चाहिए । * उससे सम्यक्त्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगणी है। $ ३४८. क्योंकि जिस जीवके दर्शनमोहनीयकी क्षपणा होनेमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष है उसके पूर्वोक्त कृष्टिगत अनुभागसे स्पर्धकगत एकस्थानीय अनुभाग अनन्तगुणा पाया जाता है जो प्रकृतमें जघन्य स्वामित्वरूपसे स्वीकार किया गया है। * उससे पुरुषवेदकी जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है।। 5 ३४९. यथा-सवेदक जीवके द्वारा सवेदभागके अन्तिम समयमें बन्धको प्राप्त हुए पुरुषवेदके नवकबन्धका अनुभाग एक समय अधिक एक आवलि कालके शेष रहनेपर दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवके सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके संक्रमसे अनन्तगुणा होता है ऐसा संक्रममें कहा है । पुनः इस अन्तिम समयके नवकबन्धसे वहीं पर पुरुषवेदके जघन्य अनुभागका उदय अनन्तगुणा है। पुनः इस उदयसे भी समयाधिक एक आवलिके उदीरणाविषयक अन्तिम समयमें स्थित सवेद जीवके पुरुषवेदकी जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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